बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया...

आज एक बार फिर इंडोनेशिया याद आया है, पर संदर्भ अच्छा नहीं है। जब मैं वहां गई थी, तो चार युवा साथियों का एक समूह हमें लेने आए। बच्चे कहूंगी उन्हें, क्योंकि 17-20 वर्ष की उम्र के होंगे वे सब। हमें देख कर वे इतने खुश हुए और इतनी आत्मीयता से मिले कि क्षण को भी ये नहीं लगा कि कहीं दूर देश में आए हैं। हमारा सामान उठाए, हमें यूनिवर्सिटी कैंपस में फैकल्टी हाउस में रूम में पहुंचाया। हमारे लिए खाने के अलावा, कुछ बढिय़ा खाने की चीजें भी वे लेकर आए थे। कितना सोचा होगा पहले से हमारे बारे में। हमारे टेस्ट के बारे में, हमारे कंफर्ट के बारे में, फिर सारे इंतजाम किए। उन्हीं में एक था बीमो, पूरे नाम का मतलब उसने बताया कि राजसी होता है। ओलिबीया, चित्रा और सोम्या । इन नामों के हिज्जे भले ही अंग्रेजिय़त दिखाते हों, पर असलियत में ये हिंदुस्तानी नाम हैं, अपने सही अर्थों के साथ। इंडोनेशिया में भारतीयों को बड़े ही प्यार से ट्रीट किया जाता है। वहां रामायण, महाभारत, भारतीय नृत्यों को बड़ी इज्जत से देखा जाता है। मतलब ये कि जब तक हम वहां रहे, सब बच्चों ने, फैकल्टी ने, यहां तक कि आम लोगों ने यादगार लम्हे हमें दिए। वहीं बीमों, ओलीबिया, सोम्या ने कहा कि भारत आना उनके लिए एक हसीन सपने जैसा है, वे चाहते हैं कि किसी भी तरह ये सपना पूरा हो जाए।
मैं सोच रही थी कि सपनों का पूरा ना होना अगर पैसों की कमी के चलते हो तो कितना दुखद है। तभी कहीं विचार आया था कि कोई फंड बनाया जाए जो इन लोगों की इंडिया में आने में मदद करे। उनमें से सोम्या के कोई दादा परिवार के लोग केरल से संबंधित हैं और सोम्या के पापा, जकार्ता के पास किसी जगह पर एक भारतीय रेस्तरां चलाते हैं। और अगले दिन वह खुद हमारे लिए दक्षिण भारतीय मजेदार भोजन बना कर लाए थे। वे जिस अंदाज में हमें मै-दा-म बोल रहे थे, अच्छा लगा था। उन्होंने ही बताया कि वे सोम्या को आगे की पढ़ाई के लिए भारत भेजना चाहते हैं। और उसकी शादी भी वहीं करना चाहते हैं। जब-जब भारत की तारीफ होती, हमें अच्छा लगता। मन पता नहीं कब बड़े गर्व से भर जाता। एक फंक्शन में सोम्या ने हमारे साथ साड़ी पहनी, वह बड़ी अच्छी लग रही थी। उसका रंग गहरा है, आंखें बड़ी-बड़ी हैं, बाल घुंघराले। वह खालिस दक्षिण भारतीय सुंदरता है। मैं जब से इंडोनेशिया से आई, कुछ ऐसी व्यस्त रही कि उन दोस्तों से ज्यादा संपर्क नहीं रख सकी। पर एक जुलाई को मैसेज मिला कि सोम्या को दिल्ली युनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया है और वह चार जुलाई को दिल्ली पहुंच रही है। फिर पता लगा कि उसे एडजस्ट करने में मुश्किल हो रही है, लेकिन कल जो पता लगा वह शर्मनाक था कि वह एक शाम ईव टीजिंग का शिकार हुई।
बेहद दुख हुआ है। एक निजी शर्म की बात लग रही है। जीवन में सपना देखना, उसे पूरा होते देखना फिर उसका दु:स्वप्न में बदल जाना देखते-देखते, कितना बुरा लगा होगा उसे। इंडोनेशिया की बसों, ट्रेनों में, इतना अच्छा माहौल देखा था मैंने और बेहद एप्रीशिएट भी किया था। किसी को किसी से अनावश्यक मतलब नहीं। मदद के लिए बेशक हाजिर हैं पर किसी की बदनजऱ मुझे नहीं आई। और हमारे यहां आए लोगों से ऐसा व्यवहार, क्या किया जाए। कैसे किया जाए। शुरू कहां से करें। बहुत सारे सवाल हैं। जवाब कहीं नहीं, कोई नहीं है। सिवाय ढेरों शर्मिंदगी के। ऐसी ही एक बुरी खबर असम की टीवी पर बार-बार दिखाई जा रही है। लड़कियों के मामले में, मुझे भ्रूण हत्या, दूसरे दर्जे की समस्या लगती है। पहली ये है कि जो लड़कियां हमारे पास हैं, साथ हैं, उन्हें सुरक्षित माहौल दिया जाए। एक जीने लायक जीवन, फिर इन्हें भ्रूण हत्या के मायने समझाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, वरना कौन जाने, भ्रूण हत्या समस्या ना हो कर समाधान लगने लगे।
डॉ. पूनम परिणिता