सौभाग्या

नाम - कुछ नहीं, माँ का नाम - पता नहीं, पिता का नाम - पता नहीं, जन्म समय - पता नहीं, जन्म स्थान - पता नहीं
ये सब पता नहीं हैं, ये नहीं है ये सब हैं ही नहीं, ये सतयुग नहीं हैं कि मैं किसी यज्ञ या खीर या फल से पैदा हो गयी हूँ ! मैं हूँ तो माँ भी जरूर होगी और पिता भी ! और मैं तुम्हे ढूँढ भी लूंगी ! जब तुमने मुझे गंदे नाले के पास मरने को छोड़ा था और पलट के भी न देखा था, मैंने तो तब भी रोते रोते यही कहा था - मुझे तो छोड़ कर जा रही हो, पर मेरे एहसास को क्या छोड़ पाओगी ? मेरे होने को क्या भुला पाओगी ?
माँ जब तुम मुझे छोड़ कर चली गयी, तो सूरज भी अस्त होने चला गया ! हालाकि वो तो कल फिर सुबह जल्दी आने कि कह कर गया था ! पंछी भी अपने घरो को चले गए ! हालाकि वो तो अपने बच्चों को सँभालने गए थे ! दिन का उजाला भी चला गया ! हालाकि वो मुझे अँधेरे से ना डरने कि नसीहत देकर गया था !
माँ मैं आपको याद कर रही थी, मैं रोने लगी थी ! जानती हो फिर क्या हुआ ........ गंदे नाले से थोडा-थोडा गन्दा पानी मेरी तरफ आने लगा, जिस कपड़े में आप मुझे लपेट कर छोड़ गयी थी, वो भीगने लगा ! बदबू और गीलेपन से मुझे बेहद सर्दी लग रही थी, गन्दा पानी मेरे मुहँ में जा रहा था ! मुझे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, सो मैं चुप हो गयी और जाने कौन सी ताक़त मुझ में आ गयी, मैं संघर्ष करने लगी .... एक - एक सांस के लिए ! उस गंदगी और उबकाई से बचने के लिए मैंने अपने हाथों पैरों को चलाना शुरू किया ! तब तक दूर से दो कुत्ते भी मेरी तरफ आने लगे थे, मैंने अपनी आखों को जोर से बंद कर लिया ! मेरा दम घुटने लगा था ! पर मैं हारना नहीं चाहती थी, मैंने अपनी साँसों को रोक लिया है, मैं मरी नहीं हूँ बस सांस को रोक रखा है ! दिल धड़क रहा है आपको याद कर रहा है, दिमाग काम कर रहा है आपके बारे में सोच रहा है, आखें घूम-घूम कर आपको ढूँढ रही हैं ! बस सांस बंद है !
जंगली दिखने वाले लगातार मेरी ओर बढ़ रहें हैं ! तभी तीन चार आदमी नुक्कड़ से घूम कर आते दिखे, उन्हें देख कर कुत्ते कुछ धीरे हो गए हैं ! आपस में बतियाते आदमी कुछ तेज कदमो से गली की ओर बढ रहें हैं ! किसी विधेयक के बारे में बात कर रहे हैं, कहते हैं इस बार तो पास हो ही जायेगा, फिर तो बड़ी कद्र बढ जाएगी, संसद में इन्ही का राज होगा, देश उन्नति करेगा ! ना जाने किस विधेयक के बारे में बात कर रहे हैं !
इन्हें देख कर मेरी सांस कुछ-कुछ वापस आने लगी है ! क्या ये मेरी माँ को जानते होंगें ....... मुझे उन तक पहुंचा देंगें , अभी तो माँ दूर भी ना गयी होंगी ना ! मैं चाहती हूँ ये मुझे देखे ! अपनी साँसों को बटोर कर मैंने हाथ पैर मारने शुरू किये पर ये नारी शक्ति कि बातों में इतने मशगूल हैं ...... क्या इनका ध्यान मुझ पर जाएगा ? वैसे नारी क्या होती है ? माँ क्या है ? क्या एक नारी ?
धीमी पड़ती साँसों को फिर इकठ्ठा किया, इस बार सीने में एक हूक सी उठी है, मर्मराती सांसों के साथ एक छोटी सी रुलाई फूट पड़ी ! मैं रोना नहीं चाहती थी, पर पता नहीं क्यों कुत्तो के बाद आदम जात को देख कर बस एक अपनापन सा लगा और मैं रोने लगी ! महीन किलकार बढती जा रही है और चिल्लाहट का रूप लेती जा रही है !
उनमे से एक ने मुड़ कर देखा है, पर फिर पलट गया, इस पर मैं जोर से चिल्लाई, वो फिर पलटा, उसे विश्वास नहीं हो रहा कि मैं एक जिन्दा इंसान की कृति हूँ ! एक बारगी उसकी जान भी हलक में अटक गयी ! उसने धीरे से पास वाले को कुहनी मार कर मेरी तरफ देखने का इशारा किया ! अब चारों मेरी तरफ बढ़ रहे थे, और मेरी उम्मीद जिन्दगी की तरफ ! एक ने भाग कर मुझे उठा लिया और लगभग चीखते हुआ बोला .......... बालक है, जिन्दा है क्या ? उनकी आँखें जितनी फैल सकती थी फैली हुई थी , ए तेरा भला हो जा ........ ये किस निर्भाग के काम है ! हालाकि मुझे मेरी माँ के बारे में ये सुनना अच्छा नहीं लगा, पर उससे ज्यादा दिलचस्पी मुझे जिन्दगी का राग सुनने में थी !
थोडा अपनापन, थोड़ी आत्मियत का स्पर्श पा कर अब मैं जोर-जोर से रोने लगी ! किसी ने अस्पताल जाने की सलाह दी, किसी ने थाने में रिपोर्ट करने की, तो किसी ने सरपंच के पास चलने की ............ इधर मेरी जिन्दगी की लौ में तेल लगातार ख़त्म होता जा रहा था ! आखिर क़ानून से ज्यादा जिन्दगी की अहमियत ने जोर मारा, और मुझे शहर के सरकारी अस्पताल में ले जाने की बात पर सहमति हो गई ! पांच छह आदमी जीप में मुझे शहर ले जा रहे थे ! अब मैं साफ़ कपड़े में लिपटी थी ! मेरे गिर्द सुरक्षित हाथों का घेरा था, मैं किसी की गोद में थी ! पर गंदगी, लिजलिजापन, शिकारी कुत्तो का डर लगातार मेरे जेहन में अस्तित्व बनाए हुए था ! जैसे ही मन कुछ शांत हुआ, मैं इन खुरदरे हाथो में मैं कुछ तलाशने सा लगी ! क्यों होंठ बार-बार सूख जाते हैं ? क्यों जीभ को कुछ नरम, कुछ नीम गरम प्राणदायी अमृत पेय की दरकार है ! क्या यही मनुष्त्व है ....... जब मौत सामने दिख रही हो तो जिन्दगी चाहिए थी, जब जिन्दगी मिलती दिख रही है तो जीवन चाहिए और जीवन का भी रस भी !
मुझे इमरजेंसी में ले जाया गया ! एक बार तो डाक्टरों ने पुलिस रिपोर्ट की बात की, फिर अपने कर्त्तव्य को साधने में जुट गए ! एक नर्स ने मेरे नाज़ुक हाथों में चुभो कर मुझे किसी बोतल के सहारे छोड़ दिया है ! मुझे अपनी साँसे डूबती सी लग रही हैं ! धीमी-धीमी आवाजे सुनाई पड़ रही हैं, इसे निकू में ले जाओ, आक्सीजन शुरू करो, ब्लड टेस्ट करवाओ, इसकी फाइल बनाओ ! सिस्टर की आवाज कुछ तेज है ! साफ़-साफ़ सुनाई दे रही है .......... नाम क्या लिखूं डा साहब ..... कुछ नहीं .......... माँ का नाम, पिता का नाम .......... पता नहीं ..............जन्म स्थान, जन्म समय .............. पता नहीं .. अरे सिस्टर, अननोन बेबी लिख दो, अज्ञात बच्ची !
मेरी कहानी यहीं से शुरू हुई थी ना ! पर मेरा वादा है आपसे, इसे ख़त्म ऐसे नहीं होने दूंगी ! मेरे आदि भले ही अज्ञात हो पर अंत अज्ञात ना होगा !
साँसों ने जिन्दगी का जोर पकड़ लिया है और जीवन सरगम शुरू हो गयी है ! रात के बारह बज रहे हैं, डाक्टर अनु की ड्यूटी शुरू हो रही है ! अरे ये कौन है सिस्टर ..... अननोन बेबी है डाक्टर .......... आज शाम सात बजे कुछ लोग छोड़ गए हैं ! कितनी स्वीट है ..... इसका हेल्थ स्टेटस क्या है ? अब ये ठीक है ...... अंडर आब्सरवेशन है डाक्टर ! अच्छा, इसे देख कर मुझे एक नाम याद आ रहा है, चलो इसका नाम रखते हैं "सौभाग्या" ! और डाक्टर अनु ने फाइल पर लिख दिया मेरा नाम - सौभाग्या ! पर सिस्टर ने उस पर से अननोन बेबी क्यों नहीं काटा ! डाक्टर अनु ने मुझे गोद में उठाने को लिया, तो मैंने पास रखे पानी के गिलास को पैर मार दिया है ! पानी भी सावधानी से गिरा, वहाँ ...... जहाँ अननोन बेबी लिखा था, और अननोन बेबी बह चला है पानी के साथ ! अब फाइल पर सिर्फ सौभाग्या लिखा है ! मैं सौभाग्या !