ये जो मन की सीमा रेखा है...

हाल ही में सचिन और रेखा के राज्यसभा में मनोनीत किए जाने के लिए नाम तय हुए हैं। यह राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्ति है या कहिए उनका अधिकार है कि वे देश के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली शख्सियतों को राज्यसभा के लिए नामित कर सकते हैं और इसमें कोई शक नहीं कि सचिन व रेखा दोनों अपने फन में माहिर हैं, लेकिन जब से दोनों का नाम अनाउंस हुआ है, ये मीडिया में सुर्खियों में हैं। बस इसी का नाम राजनीति है। अब ये मुंह खोलेंगे तो मीडिया अपने हिसाब से उसके मायने तय करेगा और जुबां बंद रखेंगे तो उसका अर्थ भी अपनी भाषा में बांचेगा।
बाखुदा, जितना सब लोग जानते हैं। सचिन और रेखा दोनों अपेक्षाकृत कम बोलने वाले लोगों में से हैं, लेकिन दोनों के बारे में वाकयुद्ध लगातार जारी है। सचिन का तो फिर भी राजनीतिक कैरियर तय किया जा रहा है, उन्हें मौखिक रिटायरमेंट दी जा रही है, लेकिन रेखा, उनकी गरिमामयी चुप्पी पर क्यों सवालों का सैलाब ढाया जा रहा है। संसद में सिलसिला...क्या होगा जब जया से मिलेंगी रेखा। रेखा और अमिताभ की प्रेम गाथा सत्तर-अस्सी के दशक के दर्शकों के लिए ‘राजुकमारी की प्रेम कहानी’ जैसी है। इन्होंने इन दोनों की प्यार की कहानी को अपनी आंखों से पढ़ा है। सिलसिला सिर्फ फिल्म नहीं, इन तीनों ज़िदगियों की सच्ची दास्तान थी, एक सच्चे अंत के साथ जिसमें अमिताभ अपनी जीवन संगिनी का साथ निभाने का फैसला लेते हैं। और उसे फिल्मी परदे से इतर, आज तक निभाते आ रहे हैं।
एक तेज है सबके चेहरे पर, अमिताभ में अपनी गरिमा और निष्ठा है, जया पर अपने सतीत्व का और रेखा पर अपने प्यार का और सभी इस ओज को बनाए हुए हैं। जाने क्यूं-क्यूं दर्शाया जा रहा है कि रेखा पहले दिन सदन में जाते ही, जया को देखते ही, जाने कैसे रिएक्ट करेंगी। बस उस एक पल को, चेहरे पर आते-जाते भावों को, आंखों की उस भाषा को हर चैनल अपने हिसाब से पढ़ेगा और गढ़ेगा। टीआरपी की एक नई इबारत। पर वो नहीं जानते, अमिताभ, रेखा और जया उस वक्त के मंझे हुए कलाकार हैं, जब ये ब्रेकिंग मीडिया पैदा ही नहीं हुआ था।
रेखा जानती हैं कि इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों है, फिर यूं ही थोड़े ना, पढ़े लेने देंगी, इन आंखों की भाषा सभी को। फिर इन्हें तो भगवान ने भी जाने क्यूं पैसा, शोहरत, कला सब कुछ देते हुए भी प्यार से महरूम रख दिया। सुरैया, मधुबाला, मीना कुमारी की ही अगली कड़ी का नाम है रेखा। जब हम ही रेखा का नाम आते ही जहन में अमिताभ को स्वत: ही ले आते हैं तो रेखा का कसूर कब है। सिलसिला फिल्म का ही एक डॉयलाग है, जब अमिताभ कहते हैं-वो कब का, सब कुछ पीछे छोड़ आए थे, भूल चुके थे, पर वक्त ने फिर से इसे सामने लाकर खड़ा कर दिया है तो....लेकिन, ये बस कलाकार, जब झूठा अभिनय करके आपको, हमको हंसा, रुला सकते हैं तो क्या अपनी असल ज़िंदगी में अपनी गरिमा बनाए रखने को असली अभिनय नहीं कर सकेंगे। तो स्वाद के चाटुकारों के हाथ कुछ नहीं आने वाला। रेखा सदन में जाएंगी, जया को देखेंगी, फिर प्यार से दोनों गले मिलेंगी और एक ही राह के मुसाफिर होते हुए भी चल देंगी अपनी-अपनी राह।
डॉ. पूनम परिणिता