‘‘अवतार हैं या……..’’
"मुस्कान–एक महिने की !"
ये लम्बी सी मुस्कान आई!
जाने क्या देखा होगा ख्वाब तुमने,
चाहो भी तो बता न पाओगी,
बस समझ ही लेना होगा हमें खुद से,
अपनी ही खुशी से कि तुम खुश हो,
प्रकृति की इस दुनिया में आकर!
बस युं ही मुस्कुराते रहना और,
बिखेरना खुशियाँ उन सब में,
जो तुम्हे चाहे, तुम्हे अपनाऐ,
और लेना चाहे, तुम्हे अपने
थोङा, थोङा और पास ।
‘‘माँ और माँ जी’’
याद है माँ, जब अपन सब थे,
हम सब भाई बहन, पापा और आप,
तब आपका चेहरा जाने कैसे तेज से चमकता था,
आँखो में काजल, बडी सी बिंदिया, माथे पर सिन्दूर दमकता था,
कैसे भागती दौडती तुम सारे काम निपटाती थी,
कितने प्यार से हम सब बच्चों को कहानी सुना कर सुलाती थी,
हमारी हर सुबह, हमारे माथे पर तुम्हारे चुबंन से शुरु होती,
हमारी हर रात आपकी लोरियों से सपनों में खो जाती,
तब हमारी हर समस्या का समाधान तुम हुआ करती थी,
मौजे खो जाते या पेन्सिल टुट जाती;
जाने कौन सी जादू की छडी से तुम सब ढूढँ लाती,
आपके बनाये आलु के परांठे, राजमा चावल, वो मिष्ठी दही,
जाने क्या डालती थी खाने में;
पेट हमेशा भरता, नीयत कभी ना भरी,
तुलसी के सामने रोज़ दिया लगाती,
कितने नेह से हम सबको पूजा पाठ सिखाती,
कैसे जबरदस्ती आँखे मीँचे हम आरती में बैठे रहते,
उस थोडे से प्रसाद के लिए पूरी आरती सहते रहते,
जैसे हम भाई बहनो के झगडे निपटाती;
कोई दरोगा भी कहाँ कर सकता था,
हमें आपकी पिटाई से सच कहूँ बहुत डर लगता था,
पहले पिटाई कर के फिर जब सीने से लगाती थी,
ऐसे करके तो आप हमें और भी ज्यादा रुलाती थी,
कभी कही घूमने जाने का प्रोग्राम बनाती;
याद है हमारे साथ मिलकर आप भी पापा को कितना मस्का लगाती,
हमारे पढ़ाई के दिनों में कैसे साथ-साथ जागती थी,
बीच-2 में आपकी कोफी हममें नया दम भर जाती थी,
हमारी दोस्त बनकर आप हमसे हमारे दोस्तों के बारे में जानती,
कभी-2 फिर आरथोडोक्स सी बनकर हमें बिना बात कितना डाँटती,
हमारे करियर की कितनी चिन्ता करती,
हमारे एडमिशन के समय कैसे चहकती फिरती,
होस्टल में जाने को जाने क्या-2 बनाकर भेजती,
आपका बस चलता तो अपना एक क्लोन बनाकर साथ बाँध देती,
हम भी आपका फोटो रूम के टेबल पर सजाते,
सुबह आँखें बंद किए-2 आपको गुडमोर्निगँ बोलते;
फिर बिना ही आपके प्यार के बस उठ जाते,
आप हमारी कितनी चिन्ता करती,
पापा से छुपाकर थोड़े ज्यादा पैसे जेब में रख देती,
जब हम सैटल हो गए आपने कितनी खुशियाँ मनाई,
अपनी तरफ से आपने बढ़िया सब बच्चों की शादी करवाई
फिर अचानक आप माँ से माँ जी हो गई…………… !
हमारे कमरों में बङी-2 हमारी फ्रेम्ड फोटो लग गई,
आपकी ब्लैक एन्ड वाईट फोटो जाने कहाँ खो गई,
आपके आलु के पराठें, राजमा चावल सब हवा हो गए हैं,
हम भी अपनी स्टाईल बीवीयों के साथ पिज़्ज़ा नूडल्स में खो गए हैं,
अपनें मोज़े, अपनी टाई खुद ढूंढकर पहन लेते हैं,
आपकी जादू की छङी को याद ज़रूर कर लेते हैं,
आपके बिल्कुल पास आने में जाने कौनसे डर से घबराते हैं,
शायद बीवीयों द्वारा मम्माज़ ब्वाय कहे जाने से डर जाते हैं,
अब तो ज्यादातर वक्त बस अपने कमरे में बैठी रहती हो,
कभी बी0 पी0 कभी शुगर की गोलियों में उलझी सी रहती हो ।
आज मेरी बेटी आपकी एक पुरानी फोटो उठा लाई,
पहले देर तक खुद ही उलझी रही फिर मुझे दिखाई,
पापा ये कौन हैं ?
बेटा ये आपकी दादी हैं,
सच…, दादी ही हैं ?
दादी पहले ऐसी थी ?
बडी बडी आखो में भरा भरा काजल,
माथे पर सिन्दूर, बडी सी बिंदिया,
फिर अब दादी ऐसी कैसे हो गई ?
मैं उसे तो कुछ ना कह पाया,
पर मन में जाने कहाँ से आया,
बेटा….,
आखोँ का काजल चश्में में खो गया,
बडी सी बिंदिया अब छोटी हो गई,
घर में सारा दिन माँ जी–माँ जी सुनाई देता है,
हमारी वो वाली माँ जाने कहाँ खो गई !
‘‘वो पीला वाला गुब्बारा...’’
वो नीले वाले के पीछे
वो, हाँ वो, बङा सा पीला वाला गुब्बारा
वो ही चाहिए मुझे
नहीं, नया फुला कर नहीं देना
बस वही वाला चाहिए
वो बङा सा पीला वाला गुब्बारा
ना, रंग बिरंगा नहीं
बस वही, हाँ बस वही....
आज इस उम्र में भी
मेरे अन्दर इक बच्चा
यूँ ही ज़िद करता है
बस मचल-2 उठता है
ना वक़्त देखता है
ना मेरी उम्र
ना हालात
वो तो ये भी नहीं देखता कि
कहीं कोई गुब्बारे वाला नहीं है
और ना ही कहीं कोई पीला वाला गुब्बारा.....!
“और मैं कविता तलाशती ही रह गई”
मद्धम चलती हवा और गुनगुनी धूप का होता है ,
और मेरे घर में हर मौसम खुशगवार ।
आज फिर अपना टोस्ट और कॉफी मग ले कर ;
ऊपर छत पर आ गई ;
इक नई कविता की तलाश में ,
आसमान को ताका बस चुप-2 सा था ,
पेङों को, पत्तों को देखा, थोङे सुस्त से थे ,
नीचे सङक की तरफ झांका ,
सूनी, उदास, खाली, अकेले चले जा रही थी ,
सच, कहीं किसी चीज मे आज कविता नहीं मिल पा रही थी।
सामने वाले घर की रेंलिग पर एक कौवा बैठा हैं ,
जाने हल्की हवा का असर है कि मीठी धूप का ;
अपने पंजो को छिपाये और पखों को फुलाये बस बैठा है ;
ना उसे मेरी बात समझ में आती है ;
ना मुझें उसका मौन ,
फिर भी मैने उससे पूछ ही लिया ;
कैसे हो महाशय…….?
उसने दो बार इधर उधर देखा,
और चोंच से पंख सवांरने लगा ;
जैसे कह रहा हो ;
बिल्कूल ठीक हूँ , मजे ले रहा हूँ ;
जैसे तुम मेरे ले रही हो, मैं तुम्हारे ले रहा हूँ ,
अच्छा……, मैं हँस पडी ;
मुझे तो कुछ फिक्रमंद नजर आते हो, मेरा अगला सवाल था ;
वो उचक कर छत पर लगी डिश की तरफ देखने लगा ,
क्या .. आजकल के समाचारो से परेशान हो ;
पर क्या तुम्हें भी फर्क पडता हैं ,
सेनसेक्स का ग्राफ गिरता है ;
तो क्या तुम्हारा भी दिल उछलता है ,
उसने गरदन हिलाई ….
ना…।
तुमने वो प्यासे कौवे वाली कहानी नहीं सुनी ,
अपना तो ये उसुल है ,
इंतजार करते है, संयम ऱखते है ,
देखते रहते है, कंकङ दर कंकङ ;
चोंच से पानी कितनी दूर है ,
ज्यों ही जग में पानी ऊपर आया ;
पैसा बनाया, माने पानी पिया ;
और उङ गया ,
अच्छा… तो फिर क्या जमीन के बढते भावों की चिंता में हो ,
मैनें संवाद को आगे बढाने के लिए नया सवाल उछाला ,
उसनें एक लम्बी सांस ली ,
और जैसे अपनी तेज नजर से ;
दूर तक की सारी धरती नाप ली ,
इस बारे में ना पूछो ,
जानती तो हो ;
आजकल अपना खुद का पेङ ढूढना कितना मुश्किल हो गया है ,
एक जीवन लग जाता है ;
बढिया सोसाइटी में एक हरा भरा पेङ पाने में ,
कितना कुछ देना पङता है डीलरों को ;
एक कोयल का घौंसला रेन्ट पर हथियाने में ,
वो कुछ उदास सा हो चला था ।
सो मूड बदलने की गरज से ;
मैनें हल्का फुल्का सवाल किया ,
और आजकल खाने-वाने का क्या चल रहा है ;
तभी अचानक नीचे मोबाइल की घंटी बजी ;
कौवा बोला नीचे जाओ तुम्हारा फोन बज रहा है ,
मैं थोङी देर में जब फोन देख कर ऊपर आई ;
देखा कौवा मेरा टोस्ट मजे़ से खा रहा था ,
और साथ ही पंजे में पैन पकङ, कागज पर चला रहा था ,
मैंनें देखा कागज पर उसने लिखा था ;
खाने पीने को मिल ही जाता है ;
आप जैसों की दूआ है ,
माफ करना तुम्हारे टोस्ट पर मेरा नाम लिखा है ,
कैसे छोङुँ, इतना बढिया ब्रेकफास्ट है ,
अच्छा परसों फिर छत पर आना, यहीं मिलूँगा ;
कल मंगलवार है मेरा तो फास्ट है ,
और उङते-2 कौवा बोला ;
क्यों क्या कोई मिस्ड कॉल आई थी ;
एक दोस्त को कह कर मैंनें ही करवाई थी !
यूँ टोस्ट कौवा ले उङा, कॉफी ठंडी हो गई ;
और मैं कविता तलाशती ही रह गई ।
‘‘आखिर हैं तो वो हमारे अपने’’
‘‘सपना मेरा’’
कुछ देर को बन्द हैं ये, जैसे कि लेती हैं सांस,
फिर देखेगीं नया सपना, बांधेगी नयी आस !
बनेगा या बिखरेगा वो सपना मेरा !
बस इसमें इक ही चीज जरुरी है साथ तेरा,
टूटॅगा तो दूंगी हथेली पर तेरी आंसु कुछ,
संवरेगा तो होऊगी तेरे होठों पे मै भी खुश !
रोंऊगी तो लग जाऊंगी गले से तेरे !
खुश होऊंगी तो लग जाऊंगी गले से तेरे !
गोया कि मेरा हर जश्न हैं बाजुऍ तेरी,
गोया कि मेरा हर अश्क हैं बाजुऍ तेरी !
मैनें तो देख अपने दिल का पूरा हाल लिखा,
अब तु इतना तो कर, इक सपना तो दिखा…… !