‘‘माँ और माँ जी’’

याद है माँ, जब अपन सब थे,
हम सब भाई बहन, पापा और आप,
तब आपका चेहरा जाने कैसे तेज से चमकता था,
आँखो में काजल, बडी सी बिंदिया, माथे पर सिन्दूर दमकता था,
कैसे भागती दौडती तुम सारे काम निपटाती थी,
कितने प्यार से हम सब बच्चों को कहानी सुना कर सुलाती थी,
हमारी हर सुबह, हमारे माथे पर तुम्हारे चुबंन से शुरु होती,
हमारी हर रात आपकी लोरियों से सपनों में खो जाती,
तब हमारी हर समस्या का समाधान तुम हुआ करती थी,
मौजे खो जाते या पेन्सिल टुट जाती;
जाने कौन सी जादू की छडी से तुम सब ढूढँ लाती,
आपके बनाये आलु के परांठे, राजमा चावल, वो मिष्ठी दही,
जाने क्या डालती थी खाने में;
पेट हमेशा भरता, नीयत कभी ना भरी,
तुलसी के सामने रोज़ दिया लगाती,
कितने नेह से हम सबको पूजा पाठ सिखाती,
कैसे जबरदस्ती आँखे मीँचे हम आरती में बैठे रहते,
उस थोडे से प्रसाद के लिए पूरी आरती सहते रहते,
जैसे हम भाई बहनो के झगडे निपटाती;
कोई दरोगा भी कहाँ कर सकता था,
हमें आपकी पिटाई से सच कहूँ बहुत डर लगता था,
पहले पिटाई कर के फिर जब सीने से लगाती थी,
ऐसे करके तो आप हमें और भी ज्यादा रुलाती थी,
कभी कही घूमने जाने का प्रोग्राम बनाती;
याद है हमारे साथ मिलकर आप भी पापा को कितना मस्का लगाती,
हमारे पढ़ाई के दिनों में कैसे साथ-साथ जागती थी,
बीच-2 में आपकी कोफी हममें नया दम भर जाती थी,
हमारी दोस्त बनकर आप हमसे हमारे दोस्तों के बारे में जानती,
कभी-2 फिर आरथोडोक्स सी बनकर हमें बिना बात कितना डाँटती,
हमारे करियर की कितनी चिन्ता करती,
हमारे एडमिशन के समय कैसे चहकती फिरती,
होस्टल में जाने को जाने क्या-2 बनाकर भेजती,
आपका बस चलता तो अपना एक क्लोन बनाकर साथ बाँध देती,
हम भी आपका फोटो रूम के टेबल पर सजाते,
सुबह आँखें बंद किए-2 आपको गुडमोर्निगँ बोलते;
फिर बिना ही आपके प्यार के बस उठ जाते,
आप हमारी कितनी चिन्ता करती,
पापा से छुपाकर थोड़े ज्यादा पैसे जेब में रख देती,
जब हम सैटल हो गए आपने कितनी खुशियाँ मनाई,
अपनी तरफ से आपने बढ़िया सब बच्चों की शादी करवाई
फिर अचानक आप माँ से माँ जी हो गई…………… !

हमारे कमरों में बङी-2 हमारी फ्रेम्ड फोटो लग गई,
आपकी ब्लैक एन्ड वाईट फोटो जाने कहाँ खो गई,
आपके आलु के पराठें, राजमा चावल सब हवा हो गए हैं,
हम भी अपनी स्टाईल बीवीयों के साथ पिज़्ज़ा नूडल्स में खो गए हैं,
अपनें मोज़े, अपनी टाई खुद ढूंढकर पहन लेते हैं,
आपकी जादू की छङी को याद ज़रूर कर लेते हैं,
आपके बिल्कुल पास आने में जाने कौनसे डर से घबराते हैं,
शायद बीवीयों द्वारा मम्माज़ ब्वाय कहे जाने से डर जाते हैं,
अब तो ज्यादातर वक्त बस अपने कमरे में बैठी रहती हो,
कभी बी0 पी0 कभी शुगर की गोलियों में उलझी सी रहती हो ।

आज मेरी बेटी आपकी एक पुरानी फोटो उठा लाई,
पहले देर तक खुद ही उलझी रही फिर मुझे दिखाई,
पापा ये कौन हैं ?
बेटा ये आपकी दादी हैं,
सच…, दादी ही हैं ?
दादी पहले ऐसी थी ?
बडी बडी आखो में भरा भरा काजल,
माथे पर सिन्दूर, बडी सी बिंदिया,
फिर अब दादी ऐसी कैसे हो गई ?
मैं उसे तो कुछ ना कह पाया,
पर मन में जाने कहाँ से आया,
बेटा….,
आखोँ का काजल चश्में में खो गया,
बडी सी बिंदिया अब छोटी हो गई,
घर में सारा दिन माँ जी–माँ जी सुनाई देता है,
हमारी वो वाली माँ जाने कहाँ खो गई !