‘‘अवतार हैं या……..’’

तुने कही इक कथा , बन गई जो सनातन
बिना दिए जन्म पैदा किये ऐसे अवतार जो रहेंगें युगान्तर ,
जिन्होने प्रस्तुत किये ऐसे आदर्श , कि बन गए खुद भगवान
उन्हे निभा न पाऐगें साधारण पुरूष ।
उस पर विडंबना ये कि ऐसे पुरूष एक या दो नही , हैं तैतीस करोङ
एक ओर है एक पत्नी का धर्म पालन
तो दुसरी ओर है महारास ।
एक ओर जला देने की बनाई परम्परा रावण को सीता के हरण
पर साल दर साल
दुसरी ओर संयुक्ता के अपहरण को दिया वीररूप अहसास ।
एक ओर दिया भाई ने त्याग का संदेश , और रखा चरण पादुका
को सिहांसन पर
वहीं भाईयों ने किया भाईयों का संहार , रखा स्त्रियों की भी लज्जा
को ताक पर
एक भाई ने किया भाई का चौदह बरस इन्तज़ार
वहीं दुसरी ओर एक भाई ने किया सुंई की नोक के राज पर भी एतराज़ ।
एक स्त्री ने पति से लिए वचन और दिया पुत्रसम को
चौदह बरस का बनवास ;
एक स्त्री ने बिना देखे बटँवा दिया एक स्त्री को पाँच भाईयों में जैसे कि
कोई वस्तु हो निःश्वास ।
मैं क्यूँ करुँ , मैं कैसे करुँ , मैं किस पर करुँ विश्वास ,
कि भगवान हैं , अवतार हैं, या पुरूष हैं बस थोङे खास ।