LIVELY DEAD

Dated; 2008, MAY 10.
Today I saw a dead man.
He was so lively as if he will speak.
Oh now I am fine and it seems to be an absolute peace.
No tensions no pains,
Nothing to lose and heavy gains.
Hey you the live creatures live and cry,
You can’t even imagine what a life when you die.
With the heaps of joy,
You will wonder that now I can fly.
No burdens I have to bear,
So my eyes are without tears.
Nothing is dark everything shines,
I have achieved for which I ran for my whole life.
No money, no status, no bondage, nothing to share
No ways, no destination and from here
I don’t have to go any where.
So don’t miss me as I am fine,
Don’t ever remind me that I ever cried.
Live like lifeless, until you die.
But don’t cry,
Please for my happy life,
Don’t cry.

कैसी है हमारी मुम्बई....?

ना
आज कविता ना लिख पाऊगी
कुछ भी जो लिखना चाहूगी
फिर मुंबई ही याद आएगी
वो मुम्बई जो मेरी आखों में बसी है
सबकी आखों में बसती है
पहले पहले प्यार सी
मैने पहली बार उसे देखा था
जब हमारी शादी हुई
ख्वाबों की तामीर सा वो शहर
जाने तमन्नाए वहाँ पूरी होती है या वहाँ शुरु होती है
गेट वे आफ इंडिया और ताज का वो संगम
वहाँ से उठ कर आने को किस का दिल करता है
दिल आज खबरो से दहला हुआ है
तभी तो कविता को आज बस माध्यम बना
पूछना चाहती हूँ ,कैसी है हमारी मुंबई
कहीं ज्यादा चोट तो नहीं आई
हम तो दूर है आप लोग उसका ध्यान रखना
कहना सब ठीक हो जाएगा
और इसमें कविता मत ढूढना
कहीं नही मिलेगी ....।

“मेरी बगिया में महकते रिश्ते”

आज एक लेख पढ कर
रिश्तो को एक नये रुप मे देखा
अपने घर के पिछवाडे़
अपनी बगिया मे जो कदम रखा
तो और दिनो से बिल्कुल अलग था
वो सफेद गुलदावरी का पॉधा
वो मेरा बेटा है
बहुत ही प्यारा फूलो से लक-दक
उससे नजरे हटती ही नही
पूरी बगिया में सबसे पहले नजरे उसी पर टिकती है
उसके साईज को ले कर मैं हमेशा सोचती हूँ
कि ये और बडा, और बडा हो जाए तो
ज्यादा अच्छा लगे
वो दूसरे कोने में लगा मुस्कुराता सा लाल गुलाब
वो मेरे पति है
इन्हीं से ये बगिया रोशन है
बगिया के सारे फूलों के रंगो को अपने मे समाहित रखते हैं
फिर भी अपनी एक अलग पहचान, मुस्कान और शान रखते हैं
वो सचमुच राजा हैं इस बगिया के
बगिया में छोटे पौधौं और फूलों के बीच
बडी ही माकूल जगह एक शीशम का पेड खडा है
उसे पता है बगिया में कब कितनी धूप और कितनी छावँ वाछिँत है
वो सासू माँ है
बिल्कूल तटस्थ एकदम मुस्तैद
कभी-कभी लगता है जब सब सो जाते है
तब ये पेड ही सब पर नजर रखता है
सबके खाद पानी पर निगरानी रखता है
और सबको बस अपनी नजरों से
ही व्यवहारिक ज्ञान सिखाता रहता है
ये जो नरम मुलायम घास है ना
ये हमारा कुता जानी है
हर वक्त आमत्रण सा निहीत है इसमें
आओ मेरे साथ खेलो
लोटपोट हो जाओ मुझमें
भूल जाओ सारे तनाव
अपनी सारी परेशानियाँ समा जाने दो मुझ में
बस दो घडी, आओ मेरे पास आओ
और ये जो हरी पतियों और सफेद फूलों वाला चाँदनी का पेड है ना
ये मैं हूँ
हाँ, इस घर की, बगिया की
चाँदनी सी मैं, पूनम परिणिता
कहते है ना कि सफेद रंग से ही सारे रंग बनते है
बिल्कूल सच है
बीच-बीच में बगिया मे मेहमानों से
मौसमी फूल पौधे आते जाते रहते है
छोड जाते हैं अपनी मुस्कान, अपने रंग
अब ये हम पर होता है कि
हम उनसे क्या सीखते हैं
आप भी आज जब अपनी बगिया में जाऐगें
अपने पौधौ को देख कर प्यार से मुस्कुराऐगें
तब
देखते ही देखते फूल सारे रिश्तों में बदल जाऐगे ।

‘‘मैंआपकी हिन्दी बिटिया”

मैं छोटी थी
थोड़ी चंचल थी
कुछ अल्हड़ थी
पर निरंकुश थी और निर्भय भी
बृजभाषा थी सहेली मेरी
बड़ी खड़ी खड़ी थी बोली मेरी
वो काल बड़ा ही मस्त था
मुझ पर सबका वरदहस्त था
थे सूरदास , कबीर संग
फिर आए शरतचंद्र और प्रेमचंद्र
इनके संग खेल कर बड़ी हुई
बच्ची थी मैं थोड़ी बड़ी हुई
अब आया कुछ बदलाव मुझमें ……..
नयी आशा हूँ अभिलाषा हूँ
मातृभाषा हूँ राष्ट्रभाषा हूँ ।
मुझे लगा मैं हूँ सर्वसम्पन्न
यहाँ कौन है जो करे मेरा आलिंगन
सब बुनते हैं उन्होने भी बुना
बड़ा सोच समझ कर मेरा वर चुना
मैं ब्याही गई अंग्रेजी संग
भरी मन में फिर एक नयी उमंग
पर ससुराल भी क्या अजुबा था
वहाँ का रंग ढंग ही अनुठा था
आदर का कहूँ क्या हाल था
शब्दों का अजीब मायाजाल था
अब तु भी YOU
और आप भी YOU
मुझे बात बात पर कहें
WHO ARE YOU ?
सब सहते हैं मैंने भी सहा
ससुराल को ही अपना घर कहा
पर अंग्रेजी मुझ पर यूँ हावी हुई
लगती थी मुझ पर छाई हुई
पर धीरे धीरे हद होने लगी
मेरी पहचान ही खोने लगी
अब हाल मैं अपना किस से कहूँ
डर लगता है कल रहूँ ना रहूँ
पर बेटी को क्या यूँ मर जाने दोगे
अपनी पूत्री की क्या सुध भी ना लोगे
मेरे स्वाभिमान ने मुझको पुकारा है
और आप लोगों का भी तो सहारा है
इससे पहले कि अंग्रेजी मुझे लगाए आग
बोलिए आप देगें ना मेरा साथ
धन्यवाद ।
आपकी बिटिया,
हिन्दी ।

‘‘मेरी कविता-मेरी हमदम मेरी हमसफर’’

मन के किसी छोटे कोने मे बसे गावँ सी होती है मेरी कविता
पुराने किसी बरगद के पेङ की छावँ सी होती है मेरी कविता
मन दुखी हो तो माँ के आँचल सा प्यार देती है
बेसहारा ,बेचारा भावो को कागज पर उतार देती है
मै मन से और मेरा मन मुझ से जाने कितनी बातें करते है
दोनों मिल कर फिर सारी दूनियाँ मे घूमा करते है
कहीं कहीं इकठ्ठे दोनों अटक से जाते है
कुछ शब्द खोजते है,कोई लय नई बनाते है
फिर अपनी हमसफर लेखनी को बुलवाते है
उसे समझाते है कि दरअसल हम कहना क्या चाहते है
लेखनी चुपके से कोरे कागज के कान में कुछ कहती है
और कब से कोरे पङे उस कागज का मोल ही बदल देती है
पर सारी बातें भी कागज को कहाँ बता पाते है
कितने राज तो वहीं कहीं कविता के पास ही दफन हो जाते है
आसूँ कहीं जो किसी अक्षर पर गिर जाते है
दाग कागज पर भले ही रह जाए पर दिल से तो धुल ही जाते है
मेरी कविता में जीता रहता है बस आमजन
परत दर परत उघङता रहता है मानस मन
कहाँ मेरे बस का रहा अब ये आवारापन
जाने किस मोङ पर ले जा छोङेगा ये बंजारापन
मेरी तो पुराने गहनो सी पोटली में बधी रखी है
मेरी तो सबसे प्यारी ,राजदार सी ये सखी है
कुछ आसुओं के नग ,कुछ मुस्कान के मोती थोङी चाँदी सी हँसी
जब भी खोलु होठों पे दे जाती है इक अनकही सी खुशी
मेरी तरह तुम भी इन्हें बस लुत्फ उठाने के लिए पढो
मेरे भावो से समझो या अपने नये भावो में गढो
ठंडी ब्यार सी है ये दिल को छू कर जाऐगी
मेरी तो महकाई है आपकी भी जिदगीं महकाएगी
उदास रातों में कहीं जुगनु सी टिमटिमाएगी
मेरी कविता ही नही मेरा भरोसा भी हैं ये
कहीं भटकनें जो लगी तो रास्ता दिखाएगी !

'‘कविता अभी बाकी है’'

आज मौसम अच्छा है,
और आपको इन्तजार भी है !
एक सुन्दर कविता आएगी क्या ?
बाहर टिप-टिप बारिश हो रही है,
और कविता है कि भीतर कहीं सो रही है !
चलुं कुछ देर बरिश में,
थोङे भाव आने दूं कवि मन में,
क्या जाने निर्झर बुंदें,
क्या सुना जाएं !
और खोले किवाङ……..
आया एक ठंडी भीगी हवा का झोका,
भिगो गया तन मन को !
डाल दिया है खुद को इस बयार में….
भीगी खूब भीगी….
ले लिया मजा बारिश का !
पर कविता ?
वो तो अभी बाकी है मेरे दोस्त !
क्या मुझे पतझङ का इन्तजार है ?…………….

‘कविता फिर कभी……’

ना कोइ खुशी है,
और कोइ गम भी नही,
सो कविता करने का मौसम भी नही!
ना कोइ वेदना है…
ना कोई सवेदना है…
उनीदी सी आखो से घङी को देख्नना है!
बोझिल है पलके, आखो मे नीद है अभी,
सो इन्तजार कीजिए,
मौसम तो आने दिजिए!
देगे एक सुन्दर कविता फिर कभी……….