‘‘मैंआपकी हिन्दी बिटिया”

मैं छोटी थी
थोड़ी चंचल थी
कुछ अल्हड़ थी
पर निरंकुश थी और निर्भय भी
बृजभाषा थी सहेली मेरी
बड़ी खड़ी खड़ी थी बोली मेरी
वो काल बड़ा ही मस्त था
मुझ पर सबका वरदहस्त था
थे सूरदास , कबीर संग
फिर आए शरतचंद्र और प्रेमचंद्र
इनके संग खेल कर बड़ी हुई
बच्ची थी मैं थोड़ी बड़ी हुई
अब आया कुछ बदलाव मुझमें ……..
नयी आशा हूँ अभिलाषा हूँ
मातृभाषा हूँ राष्ट्रभाषा हूँ ।
मुझे लगा मैं हूँ सर्वसम्पन्न
यहाँ कौन है जो करे मेरा आलिंगन
सब बुनते हैं उन्होने भी बुना
बड़ा सोच समझ कर मेरा वर चुना
मैं ब्याही गई अंग्रेजी संग
भरी मन में फिर एक नयी उमंग
पर ससुराल भी क्या अजुबा था
वहाँ का रंग ढंग ही अनुठा था
आदर का कहूँ क्या हाल था
शब्दों का अजीब मायाजाल था
अब तु भी YOU
और आप भी YOU
मुझे बात बात पर कहें
WHO ARE YOU ?
सब सहते हैं मैंने भी सहा
ससुराल को ही अपना घर कहा
पर अंग्रेजी मुझ पर यूँ हावी हुई
लगती थी मुझ पर छाई हुई
पर धीरे धीरे हद होने लगी
मेरी पहचान ही खोने लगी
अब हाल मैं अपना किस से कहूँ
डर लगता है कल रहूँ ना रहूँ
पर बेटी को क्या यूँ मर जाने दोगे
अपनी पूत्री की क्या सुध भी ना लोगे
मेरे स्वाभिमान ने मुझको पुकारा है
और आप लोगों का भी तो सहारा है
इससे पहले कि अंग्रेजी मुझे लगाए आग
बोलिए आप देगें ना मेरा साथ
धन्यवाद ।
आपकी बिटिया,
हिन्दी ।