‘‘विरहा’’–THE RESULT OF SEPARATION

मैं प्रणया हूँ यही मेरा नाम है
माँ कहती है ये उनके और पापा के परिणय का नहीं प्रणय का परिणाम है ।
सरनेम के बारे में उनके विचार हैं कि ये बाते दकियानुसी और बेकार हैं ।
शादी पापा से की नहीं live in relationship में रह रही हैं
पहले भी मीता वर्मा थी और आज भी वो वही हैं
मैं उनका चाहूँ या पापा का कोई भी सरनेम use करूँ
और इस बात के लिए दुनियाँ वालों की बातों से बिल्कुल ना डरूँ ।
मम्मा call centre में working है पापा M.N.C. जाते हैं
हम तीनों अपनी-2 चाबियों से घर को lock कर जाते हैं
दिन भर अपने कामों में व्यस्त रहते हर रात dinner ही इकठ्ठे कर पाते हैं
माँ कहती है मैं ही उनकी दुनियाँ हूँ बस ये ही उनका संसार है
मम्मा को पापा अक्सर कहते हैं, मुझे तुमसे प्यार है
मैं उनकी बेटी हूँ या पापा की इस बात पर झूठ-मूठ लङते हैं
फिर दोनों मेरे गले में बाहें डाल अपने प्यार को सांझा करते हैं ।
कुछ दिनों से मम्मा abroad जाने की, Promotion की बातें कर रही हैं
उपर से ठीक जताती भीतर से tense सी दिख रही हैं ।
अपना रूम बंद कर अक्सर दोनों ज़ोरों से चिल्लाते रहते हैं
Everything will be fine baby ये मुझे जताते रहते हैं ।
Live in relationship भी नया था
पर अब और नया word आया है
मुझे लगता है मेरे घर पर separation का साया है ।
मैं उनकी हूँ या पापा की अब ये झगङा सचमुच का है
दोनों के career के आङे आ रही हूँ अब बोझ ये सोचें किसका है ।
दोनों अपनी राहों चले गये मुझको Boarding में डाल दिया
जाते ही मुझसे किसी ने वहाँ नाम मेरा फिर पूछ लिया....
मैं विरहा हूँ हाँ, यही मेरा नाम है
माँ कहती हैं ये उनके और पापा के प्रणय का नहीं
Separation का परिणाम है ।

‘‘अभी तो ज़िन्दगी के बहुत दिन पङे हैं।’’

आज रात अजीब एक सपना आया…
किसी ने बताया कि आज का दिन आखिरी है….
मेरी ज़िन्दगी का ।
हङबङा कर उठी मैं, शान्त किया अपने मन को,
फिर याद किया अपने स्वप्न को,
क्या सचमुच आज, सिर्फ आज…
कितने काम बाक़ी हैं ज़िन्दगी के, और दिन बस…
हे भगवान कहाँ से शुरु करुँ……
कल जब माँ का फोन आया,
तो बीच में ही कट गया,
दोबारा मिलाने की जहमत ही नहीं उठाई,
सोचा सारी बातें वही तो है रटी-रटाई,
जल्दी से माँ को फोन मिलाऊँ,
आज का अपना सपना बताऊँ,
कहते है झुठा हो जाता है सपना बताने से
और उनकी भी सारी बातें सुन लुँ,
कितना तरसती है वो,
कितना बताना चाहती है, और मैं हूँ कि……
बेटे के बारे में पति से बात करनी है,
देखो मेरे बाद उसका ख्याल रखना,
ज्यादा सख्ती मत बरतना,
वो जो चाहे उसे करने देना,
वो चाहे करियर की बात हो या शादी की,
हाँ उसे बोर्डिगँ मत भेजना,
वहाँ रह जाएगा अकेला ही।
और हाँ तुम भी अपना ध्यान रखना,
मै तो हूँगी नहीं…
जैसे तैसे manage कर लेना,
मन चाहें तो कर लेना,
मुझ से क्यूँ कहलवाना चाहते हो कि दूसरी शादी मत करना,
पर मेरे बेटे का ध्यान तुम ही रखना ।
सासू माँ से भी sorry feel कर लुँगी,
कई बार उन्हें नाहक ही परेशान कर देती हूँ,
पर वो भी तो नही समझती,
पर कोई बात नहीं, मुझे तो जाना ही है ।
भाई-बहन को बहुत अच्छे से प्यार भरे SMS करुँगी,
कितना रोएंगे ना वो तो, जब मैं ना रहूँगी ।
और भी बहुत सारे काम है….
कितना चाहती थी…..
एक गरीब बच्चो की मदद के लिए संस्था खोलूँ,
आज रजिस्ट्रेशन तो करवा ही आऊँ,
मिसेज शर्मा को उसका Gen. Secretary बना दूँ,
बाकी सारी बातें उन्हें समझा जाऊँ,
मेरे बाद ये संस्था उन बच्चो के काम आए,
जीते जी ना सही, बाद ही में मेरा नाम सार्थक हो जाए ।
एक और काम की मन में तमन्ना रही,
एक पर्यावरण क्लब बनाऊँ,
जी भर कर फलों वाले पौधे लगाऊँ,
हर कोना हरा भरा लगे,
चारों तरफ सुंदर फूल और फल दिखें,
इसके लिए भी आज ही कुछ सदस्य बनाऊँगी,
उठते ही सबको फ़ोन लगाऊँगी,
कुछ भी ना बन पाया तो कुछ पौधे
आज ही सामने वाले पार्क में लगाऊँगी ।
ओ हो ,योगा क्लास शुरू कराने की भी कितनी हसरत रही,
पर मेरे लिए अब योगा……
मुझे तो अब शवासन में जाना होगा…
पर औरो के लिए ही सही,
अपार्टमैन्ट में सबसे बात करूगी,
और आज शाम को ही योगा की फर्स्ट क्लास शुरू करूगी।
याद आया कितनी कविताएँ भी तो पोस्ट करनी थी,
और वो जो अधूरी लिखी हैं, वो भी तो पूरी करनी थी,
और वो जो मन ही में हैं वो तो…..
और वो बङे-2 सपनें वो तो…..
वर्ल्ड टूर पर जाना था,
मुझे पूरा संसार घूम कर आना था,
खैर उपर जा कर पूरा करूँगी,
वहीं से सारा संसार देख लूँगी,
और वो अपना एक बङा सा घर,
अरे छोङो, यहाँ कौन रहना है जीवन भर।
तभी मोबाइल पर आरती की धुन बजी…
ओ! सुबह-2 बॉस का फ़ोन…
Good morning, sir.
Yes sir, I am fine.
I will submit the project well in time.
हे भगवान! ये तो याद ही ना रहा,
Meeting है, Project जमा कराना है,
ओफ्फो! P.T.M. में भी तो जाना है,
ये मोबाइल पर धुन फिर बजने लगी,
हाँ मोना, यार अच्छा किया याद दिलाया,
किट्टी मैं कैसे भूल गई ।
खैर…………………..
10 बजे Meeting attend की…
11-30 P.T.M. में पहुँच गई…
1 बजे Project submit कराया…
2-30 बजे किट्टी में बढ़िया lunch उङाया…
4 बजे डा0 साहब के बॉस के बेटे की सगाई थी,
वहाँ से वापसी में मैं मॉल होते हुए आई थी,
11 बजे जो घर आई तो नींद का पता ही ना चला,
आज का दिन कब उगा था और कब था ढला।
अगले दिन सुबह जो मैं उठी,
पिछली रात के सपने को याद कर खूब हँसी,
हर रात आँखें यूँ ही नये सपनों में खोती है,
दिन-ब-दिन ज़िन्दगी बस यूँ ही तमाम होती है,
आज भी वो सारे काम, वो सारे सपनें यूँ ही अधूरे पङे हैं,
ये ही लगता है हो जाएगें,
अभी तो ज़िन्दगी के बहुत दिन पङे हैं।

‘‘विरह—THE OLD LOVE STORY’’

एक थी दादी एक थे दादा
भोली थी दादी कङक थे दादा ।
दादी हरदम काम थी करती
दादा हरदम हुक्का पीते
दादी सबको प्यार थी करती
हङकाते रहते थे दादा ।
जाने क्युँ दादी को दादा कभी प्यार से ना बोलते थे
कङक माँङ का साफा लगाते, बस अपनी अकङ मे डोलते थे ।
गज भर घुंघट मे लिपटी दादी, सबका ध्यान वो रखती थी
नाती, पोते, बकरी, गैया सबका पेट वो भरती थी
बार बार दादी को दादा आवाज लगाते रहते थे
गलती हो किसी की भी पर उन्हे सुनाते रहते थे ।
छोटे से कद की सलोनी सी दादी
दादा लम्बे चौङे थे ।
बङी बङी मूछे थी उनकी
बाल मगर कुछ थोङे थे ।
सबको खिला कर दादी सबसे बाद में खाया करती थी
दादा की तो एक आवाज़ से सोते उठ जाया करती थी ।
दादा कभी बीमार जो होते दादी चिंतित हो जाती थी
लाख कहो पर दादी एक कौर ना खाती थी ।
दादी कहती दादा से……
कुछ ध्यान अपना भी किया करो
मीठा और घी कुछ कम कर दो
हुक्का ज्यादा ना पिया करो ।
हर सुबह वो पूजा करती, सारे करती व्रत त्योहार
उनका बस चलता तो दादा पर करती कई जन्म न्योछार ।
दादी सुनाती बहुओं को, कैसे हुआ था दादा से ब्याह
बङी शान से कहती कि, और कौन कर पाता इनसे निबाह ।
दादा हुए बीमार जो इक बार, तो दादी ने दिन रात एक किया
मन से सेवा में लगी रही, अपने तन का ना ध्यान किया ।
डरती रहती थी दादी, दादा को कुछ ना हो जाए
इनका ख्याल रखना प्रभू, दिन रात ये माला वो फिराये ।
दादा हो गए ठीक, तो दादी ने प्रसाद चढ़ाया था
इतनी भाग दौङ से हल्का दादी को बुखार चढ़ आया था ।
उस शाम बेटे बहुओं और सब बच्चो को बुलवाया था
जाने दादी को हुआ क्या, बस एक फरमान सुनाया था ।
सुनो छोटी सी बात मेरी
ना चाहती तुमसे कुछ ज्यादा,
दादा का ख्याल सब रखोगे,
बस करो मुझसे तुम ये वादा ।
बस इतना कहा दादी ने और उनकी आँखें हौले से बन्द हुई
बस बचा बाकी शरीर उनका, आत्मा तो उनकी स्वछन्द हुई ।
और उसके बाद से दादा को किसी ने हङकाते नही देखा
मीठा, घी सब कर दिया बंद, हुक्का गुङगुङाते नही देखा
वो दादा हरदम जो मूछों को ऐठे फिरते थे
अब जाने क्युँ हर वक्त वो बेचारे से दिखते थे
आँखें कुछ ना कहती उनकी,
पर मन भरा भरा सा रहता था
कोई दादी का नाम ना ले दे कहीं,
यूँ डरा डरा सा रहता था ।
दो दिन यूँ ही बस निकल गए….
तीसरा दिन जब चढ़ आया
दादा ने भी सबको तब अपने पास था बुलवाया
आओ बच्चो तुम सबको मैं
आखिरी बात बताता हूँ
दादी वहाँ अकेली होगी
सो मैं जल्दी से जाता हूँ ।
बस इतना कहा दादा ने और उनकी आँखें हौले से बन्द हुई
बस बचा बाकी शरीर उनका आत्मा तो उनकी भी स्वछन्द हुई ।
ये पुरानी प्रेम कहानी थी
बस ये इसका अन्जाम था
जाने जन्मों का बंधन था, प्यार था
कि विरह इसका नाम था ।

‘‘अम्मा चाँद आया क्या’’

शाम से ही ‘जिया’ ने परेशान है किया ,
पहले तो जो मना किया ,
वही नया शऱारा पहन लिया ।
फिर सऱेश़ाम से रट लगाई है ;
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
मैं तो समझा कर थक गई कि
ये ईद का चाँद है
बङी मुश्किल से होता है इसका दीद़ार ,
देख तू बाहर खेल
मुझे हलक़ान ना कर बेक़ार ।
मैं तो ख़ुद अपने ज़िया से पऱेशान हूँ
वो सुबह से निकलें हैं ,
बाज़ार में इतनी देर लगती है क्या ,
बस यूँ ही हैरान हूँ ।
ना फ़ोन उठाएगें
ना टाईम पर सामान लाऐगें
बच्चे अलग़ पूछ-2 कर
आसमान सर पर उठाऐगें ।
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
बिटिया ये चाँद रात में नज़र आता है ;
जब आसमाँ सारा तारों से भर जाता है ।
देख , तेरे अब्बा अभी आते ही होंगें ,
तेरे लिए शीर-ख़ुरमा , सेवईयाँ , मालपूए
सब लाते ही होंगें ।
एक़ बार जो ये फ़ोन उठा लें ,
इनका क़ुछ जाता है क्या ;
हिलाल ईद के दिन भी कोई इतनी देर से ,
घर आता है क्या ;
जिया को तो बहला दिया ;
पर इस ‘जिया’ का करूँ मैं क्या ।
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
‘जिया’ की बच्ची , बोला ना
चाँद आऐगा तो मैं खुद ही तुझे बताऊँगीं
पर अब फ़िर से पूछा ना
तो ज़ोऱ से चपत लगाऊँगीं ।
उफ्फ़ ये टी० वी० पर ब्रेकिंग न्यूज़ क्या है
दिल्ली में चाँदनी चौंक पर बम फटा है
मेरा तो दिल ही बैठा जा रहा है
कहीं घुमते फिरते
उधर तो ना निकल गऐ होंगें ,
फिर कितना भी कहो
कभी बाहर जाकर फ़ोन नहीं करेंगें ।
या अल्लाह ! मेरे बुरे क़ऱमों को नज़रअन्दाज़ करना ,
मेरे उन पर सदा अपना ऱहम बख्शना ।
ईद पर मैं अच्छा ‘फितरा’ भी दुंगीं ।
अब नमाज़ मे कभी भी कोताही ना करूँगी ।
शाम की रोश़नी रात में खोने लगी है
बच्ची अब तो चाँद के लिए रोने लगी है ।
अम्म्म्म्मा , चाँद आया क्या’…………..
सो जा मेरी बच्ची कि मैं जागती हूँ ;
अल्लाह का नज़रे क़रम माँगती हूँ ।
या खुदा इन्तज़ार की ये कैसी रात है ;
मेरे लिए तेरी झोली में क्या सौगात है ।
छत पर खङी हूँ पर नज़रे ग़ली पर हैं
आती जाती हुई हर गाङी पर हैं ।
एक रोश़नी घर की तरफ़ आ रही है
गेट तो पहले ही से खुला छोङा है
हाँ मेरी ‘जिया’ के अब्बू ही हैं ।
एक रोश़नी आसमां में भी छा रही है
सलमा , आज तो राधेश्याम जी ने बचा लिया ।
चाँदनी चौंक जा रहा था कि
नवरात्रे की पूजा के लिए बुला लिया ।
मैंने ‘जिया’ को ज़ोर से पकङ लिया ।
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
हाँ बिटिया ईद मुबारक बोलो
राधेश्याम चाचा को ।
चाँद आ गया है
तेरा भी और मेरा भी ।