‘‘अम्मा चाँद आया क्या’’

शाम से ही ‘जिया’ ने परेशान है किया ,
पहले तो जो मना किया ,
वही नया शऱारा पहन लिया ।
फिर सऱेश़ाम से रट लगाई है ;
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
मैं तो समझा कर थक गई कि
ये ईद का चाँद है
बङी मुश्किल से होता है इसका दीद़ार ,
देख तू बाहर खेल
मुझे हलक़ान ना कर बेक़ार ।
मैं तो ख़ुद अपने ज़िया से पऱेशान हूँ
वो सुबह से निकलें हैं ,
बाज़ार में इतनी देर लगती है क्या ,
बस यूँ ही हैरान हूँ ।
ना फ़ोन उठाएगें
ना टाईम पर सामान लाऐगें
बच्चे अलग़ पूछ-2 कर
आसमान सर पर उठाऐगें ।
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
बिटिया ये चाँद रात में नज़र आता है ;
जब आसमाँ सारा तारों से भर जाता है ।
देख , तेरे अब्बा अभी आते ही होंगें ,
तेरे लिए शीर-ख़ुरमा , सेवईयाँ , मालपूए
सब लाते ही होंगें ।
एक़ बार जो ये फ़ोन उठा लें ,
इनका क़ुछ जाता है क्या ;
हिलाल ईद के दिन भी कोई इतनी देर से ,
घर आता है क्या ;
जिया को तो बहला दिया ;
पर इस ‘जिया’ का करूँ मैं क्या ।
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
‘जिया’ की बच्ची , बोला ना
चाँद आऐगा तो मैं खुद ही तुझे बताऊँगीं
पर अब फ़िर से पूछा ना
तो ज़ोऱ से चपत लगाऊँगीं ।
उफ्फ़ ये टी० वी० पर ब्रेकिंग न्यूज़ क्या है
दिल्ली में चाँदनी चौंक पर बम फटा है
मेरा तो दिल ही बैठा जा रहा है
कहीं घुमते फिरते
उधर तो ना निकल गऐ होंगें ,
फिर कितना भी कहो
कभी बाहर जाकर फ़ोन नहीं करेंगें ।
या अल्लाह ! मेरे बुरे क़ऱमों को नज़रअन्दाज़ करना ,
मेरे उन पर सदा अपना ऱहम बख्शना ।
ईद पर मैं अच्छा ‘फितरा’ भी दुंगीं ।
अब नमाज़ मे कभी भी कोताही ना करूँगी ।
शाम की रोश़नी रात में खोने लगी है
बच्ची अब तो चाँद के लिए रोने लगी है ।
अम्म्म्म्मा , चाँद आया क्या’…………..
सो जा मेरी बच्ची कि मैं जागती हूँ ;
अल्लाह का नज़रे क़रम माँगती हूँ ।
या खुदा इन्तज़ार की ये कैसी रात है ;
मेरे लिए तेरी झोली में क्या सौगात है ।
छत पर खङी हूँ पर नज़रे ग़ली पर हैं
आती जाती हुई हर गाङी पर हैं ।
एक रोश़नी घर की तरफ़ आ रही है
गेट तो पहले ही से खुला छोङा है
हाँ मेरी ‘जिया’ के अब्बू ही हैं ।
एक रोश़नी आसमां में भी छा रही है
सलमा , आज तो राधेश्याम जी ने बचा लिया ।
चाँदनी चौंक जा रहा था कि
नवरात्रे की पूजा के लिए बुला लिया ।
मैंने ‘जिया’ को ज़ोर से पकङ लिया ।
‘अम्मा चाँद आया क्या’…………..
हाँ बिटिया ईद मुबारक बोलो
राधेश्याम चाचा को ।
चाँद आ गया है
तेरा भी और मेरा भी ।