‘‘अभी तो ज़िन्दगी के बहुत दिन पङे हैं।’’

आज रात अजीब एक सपना आया…
किसी ने बताया कि आज का दिन आखिरी है….
मेरी ज़िन्दगी का ।
हङबङा कर उठी मैं, शान्त किया अपने मन को,
फिर याद किया अपने स्वप्न को,
क्या सचमुच आज, सिर्फ आज…
कितने काम बाक़ी हैं ज़िन्दगी के, और दिन बस…
हे भगवान कहाँ से शुरु करुँ……
कल जब माँ का फोन आया,
तो बीच में ही कट गया,
दोबारा मिलाने की जहमत ही नहीं उठाई,
सोचा सारी बातें वही तो है रटी-रटाई,
जल्दी से माँ को फोन मिलाऊँ,
आज का अपना सपना बताऊँ,
कहते है झुठा हो जाता है सपना बताने से
और उनकी भी सारी बातें सुन लुँ,
कितना तरसती है वो,
कितना बताना चाहती है, और मैं हूँ कि……
बेटे के बारे में पति से बात करनी है,
देखो मेरे बाद उसका ख्याल रखना,
ज्यादा सख्ती मत बरतना,
वो जो चाहे उसे करने देना,
वो चाहे करियर की बात हो या शादी की,
हाँ उसे बोर्डिगँ मत भेजना,
वहाँ रह जाएगा अकेला ही।
और हाँ तुम भी अपना ध्यान रखना,
मै तो हूँगी नहीं…
जैसे तैसे manage कर लेना,
मन चाहें तो कर लेना,
मुझ से क्यूँ कहलवाना चाहते हो कि दूसरी शादी मत करना,
पर मेरे बेटे का ध्यान तुम ही रखना ।
सासू माँ से भी sorry feel कर लुँगी,
कई बार उन्हें नाहक ही परेशान कर देती हूँ,
पर वो भी तो नही समझती,
पर कोई बात नहीं, मुझे तो जाना ही है ।
भाई-बहन को बहुत अच्छे से प्यार भरे SMS करुँगी,
कितना रोएंगे ना वो तो, जब मैं ना रहूँगी ।
और भी बहुत सारे काम है….
कितना चाहती थी…..
एक गरीब बच्चो की मदद के लिए संस्था खोलूँ,
आज रजिस्ट्रेशन तो करवा ही आऊँ,
मिसेज शर्मा को उसका Gen. Secretary बना दूँ,
बाकी सारी बातें उन्हें समझा जाऊँ,
मेरे बाद ये संस्था उन बच्चो के काम आए,
जीते जी ना सही, बाद ही में मेरा नाम सार्थक हो जाए ।
एक और काम की मन में तमन्ना रही,
एक पर्यावरण क्लब बनाऊँ,
जी भर कर फलों वाले पौधे लगाऊँ,
हर कोना हरा भरा लगे,
चारों तरफ सुंदर फूल और फल दिखें,
इसके लिए भी आज ही कुछ सदस्य बनाऊँगी,
उठते ही सबको फ़ोन लगाऊँगी,
कुछ भी ना बन पाया तो कुछ पौधे
आज ही सामने वाले पार्क में लगाऊँगी ।
ओ हो ,योगा क्लास शुरू कराने की भी कितनी हसरत रही,
पर मेरे लिए अब योगा……
मुझे तो अब शवासन में जाना होगा…
पर औरो के लिए ही सही,
अपार्टमैन्ट में सबसे बात करूगी,
और आज शाम को ही योगा की फर्स्ट क्लास शुरू करूगी।
याद आया कितनी कविताएँ भी तो पोस्ट करनी थी,
और वो जो अधूरी लिखी हैं, वो भी तो पूरी करनी थी,
और वो जो मन ही में हैं वो तो…..
और वो बङे-2 सपनें वो तो…..
वर्ल्ड टूर पर जाना था,
मुझे पूरा संसार घूम कर आना था,
खैर उपर जा कर पूरा करूँगी,
वहीं से सारा संसार देख लूँगी,
और वो अपना एक बङा सा घर,
अरे छोङो, यहाँ कौन रहना है जीवन भर।
तभी मोबाइल पर आरती की धुन बजी…
ओ! सुबह-2 बॉस का फ़ोन…
Good morning, sir.
Yes sir, I am fine.
I will submit the project well in time.
हे भगवान! ये तो याद ही ना रहा,
Meeting है, Project जमा कराना है,
ओफ्फो! P.T.M. में भी तो जाना है,
ये मोबाइल पर धुन फिर बजने लगी,
हाँ मोना, यार अच्छा किया याद दिलाया,
किट्टी मैं कैसे भूल गई ।
खैर…………………..
10 बजे Meeting attend की…
11-30 P.T.M. में पहुँच गई…
1 बजे Project submit कराया…
2-30 बजे किट्टी में बढ़िया lunch उङाया…
4 बजे डा0 साहब के बॉस के बेटे की सगाई थी,
वहाँ से वापसी में मैं मॉल होते हुए आई थी,
11 बजे जो घर आई तो नींद का पता ही ना चला,
आज का दिन कब उगा था और कब था ढला।
अगले दिन सुबह जो मैं उठी,
पिछली रात के सपने को याद कर खूब हँसी,
हर रात आँखें यूँ ही नये सपनों में खोती है,
दिन-ब-दिन ज़िन्दगी बस यूँ ही तमाम होती है,
आज भी वो सारे काम, वो सारे सपनें यूँ ही अधूरे पङे हैं,
ये ही लगता है हो जाएगें,
अभी तो ज़िन्दगी के बहुत दिन पङे हैं।