ना कोइ खुशी है,
और कोइ गम भी नही,
सो कविता करने का मौसम भी नही!
ना कोइ वेदना है…
ना कोई सवेदना है…
उनीदी सी आखो से घङी को देख्नना है!
बोझिल है पलके, आखो मे नीद है अभी,
सो इन्तजार कीजिए,
मौसम तो आने दिजिए!
देगे एक सुन्दर कविता फिर कभी……….
KUCH PAL SOOKOON KE...