ये वादियां, ये फ़िज़ाएं...

सुबह उठी तो उठने का मन नहीं था। हल्का सा परदा हटाकर बाहर देखा, दूर-दूर तक सूरज का कहीं नामो-निशान नहीं था। गहरी सर्द धुंध छाई थी, पेड़-पौधे, हवा, पंछी सब मेरी ही तरह बस अंदर से ही झांक रहे थे। उठे कि नहीं, बाहर निकले या फिर, फिर से बिस्तर में अलसाएं। तो भी दुनिया है, दफ्तर है, उठना तो होगा, सो उठे। वहीं सब रोज का रुटीन, दिन में दस बजे के पास, फोन आया, ‘शिमला जाने का प्रोग्राम बन रहा है, चलें क्या?’ अब कहीं घूमने जाने को हर वक्त मचलता मन, भला क्यूं मना करने लगा। हां पहले कह दिया, सोचने का काम मैं बाद में करती हूं। शिमला पहले भी जा चुकी हूं। पहाड़ों की सोहबत तो मुझे पसंद है, पर आप दूर की सोचने लगेंगे तो चक्कर आ जाएंगे।
खैर, अगले दिन सुबह पांच बजे गाड़ी आ गई। तीन जन हम और एक और डॉक्टर दंपति तथा उनके दो प्यारे बच्चे। चल दिए। बस पहाड़ ही नहीं हैं हमारे हिसार में, वैसे सर्दी के मामले में किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है। आज भी उतनी ही सर्दी है, पर बच्चों को ढकते-संभालते, अपनी सर्दी का पता नहीं चलता। सफर में जाते हुए एक आदमी ऐसा ज़रूर होना चाहिए जो हर वक्त बोलता रहे या फिर एक से कम एक गानों की ऐसी सीडी हो जो चुपचाप सुनी जा सके देर तक।
अभी हमें चले आधा घंटा ही हुआ था कि एक फोन बजा। पता चला कि डॉक्टर मैडम की कॉल है। सीजेरियन करना है, बरवाला में। दरअसल, हमारे, उनके, हां करने या मना करने का सवाल ही नहीं होता। सब कुछ उपर वाले के नाम से फिक्सड है। अब शिमला जाने को निकले डॉक्टर, पर कोई है जो अभी इस दुनिया में भी नहीं है, पर आपका इंतज़ार कर रहा है कि अपने औजारों के साथ आइए, मुझे बाहर निकालिए और इस दुनिया में लाइए। और फिर अपना शिमला जाइए या फिर कुल्लु-मनाली। सो नियत स्थान, नियत समय गाड़ी रुकी, डॉक्टर साहिबा ने सीजेरियन किया, एक बच्ची रोते-रोते इस जहां में आई, उसकी मां दर्द में भी मुस्कराई और हमारी गाड़ी फिर आगे बढ़ चली, शिमला की तरफ।
इस बार पहले से खबर लेकर चले थे कि बर्फ पड़ रही है और प्रायोजन भी यही था कि गिरती बर्फ देखनी है। वरना पड़ी हुई बर्फ और सर्दी तो पहले भी देख चुके हैं। तय ये हुआ कि हम तीनों रास्ते में शानदार कॉंटीनेंटल में रुकेंगे और डॉक्टर दंपति बच्चों के साथ शिमला जाएंगे और अगर बर्फ गिर रही होगी तो हम भी अगले दिन शिमला जा जाएंगे। अगले दिन सुबह फोन आया कि थोड़ी बर्फ तो गिर ही रही है, आ जाओ। सो, पहुंच गए शिमला, पर बर्फ तो नहीं दिखी। हां, होटल के मैनेजर ने बाहर की तरफ देखकर बताया कि गिर सकती है शायद आधे घंटे तक। पर कोई कह रहा था कि बर्फ देखनी है तो कुफरी जाओ।
अब बर्फ तो देखनी थी, कुफरी की तरफ चल दिए। सिर्फ दस मिनट ही चले होंगे, बस वो नजारा दिखा कि वहीं थम गए। अद्भुत। आकाश से यूं गिर रही थी बर्फ कि जैसे...नहीं मिल रहे हैं शब्द, सिर्फ अनुभव किया जा सकता है उन क्षणों को। किसी के बताए पता नहीं चलेगा। खुद हाथ उठाकर उन सफेद मासूम फाहों को छूकर पता चलता है कि भगवान के पास, इस कड़कती धूप, धूल भरी आंधियों के अलावा भी है तो बहुत कुछ, पर दिखाता कब है, किसे कहां? ये उसे ही पता है। बहरहाल, ऐसे मौसम में बर्फ के बारे में लिखने का मकसद बस इतना ही था गर्मी में भी सर्दी का एहसास। बस यूं ही बने रहिए हमारे साथ। हैप्पी गर्मी।
-डॉ. पूनम परिणिता