एक गिलहरी, अनेक गिलहरियां...

पिछले कुछ दिनों से दोस्तों की फे़हरिस्त में एक नया नाम जुड़ा है। वो टम्मो है, क्योंकि मुझे उसका असली नाम नहीं पता, सो ये नया नाम मैंने उसे दे दिया है। वो एक गिलहरी है, जो रोज मेरे कमरे के एसी के ऊपर उठी हुई खिड़की पर आती है। मैंने उसे एक दिन यूं ही देख लिया, वो उस लेटी हुई खिड़की पर उछल-कूद कर रही थी और बाकायदा चिटर-चिटर की आवाज़ें निकाल रही थी। मैंने अनायास ही इसे स्नेह भरा निमंत्रण समझ लिया। अपने परांठे में से आधा, छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर उसके लिए रख दिया।
मैंने देखा, मेरे वहां से हटते ही वो खाने पहुंच गई। एक टुकड़ा उठाया, अपने अगले दोनों पैरों से पकड़ा और लगी स्पीड से कुतरने। उसे ऐसा करते देख मैंने खिड़की से उसकी वीडियो भी बना ली। इस बीच पीली आंखों वाली काली चिडिय़ा भी आ गई। ये मेरा अपना अनुभव कहता है कि जब भी आप चिडिय़ों को दाना, खाना, पानी डालना शुरू करते हैं, तो सबसे पहले ये पीली आंखों और चोंच वाली बड़ी सी काली चिडिय़ा जिसे आम भाषा में ‘काबर’ भी कहते हैं, आती है। साथ-साथ वो अपनी पुरानी छोटी वाली भूरी घरेलू चिडिय़ा आ जाती है। इस क्रम को लगातार कई दिनों तक चलता रहने दें, फिर घुग्गी आना शुरू होती है। इसके बाद कबूतर और अगर आपके डाले हुए दानों पर तोते आने शुरू हो जाएं तो समझिए आप पंछी फ्रेंडली हो गए हैं। लेकिन इनमें से भूरी चिडिय़ा और कबूतर जहां दोस्ती के स्तर तक आ जाते हैं, काली चिडिय़ा और तोते सिर्फ खाने से मतलब रखते हैं। वो दोस्ती तो अलबता करते नहीं, करते हैं तो निभाते नहीं।
खैर, बात टिम्मो गिलहरी की हो रही थी। दोपहर को मैंने उसके लिए लंच में से कुछ चावल निकालकर डाल दिए। एक-दो दिन में उसे मेरा खाने का रूटीन पता चल गया। मैंने देखा कि वो मेरे खाने के समय से कुछ पहले आती, चिटर-चिटर की आवाज़ करती, फिर चली जाती और जैसे ही खाना डाला जाता, वो फिर खाने आ जाती। तीसरे दिन मैंने देखा एक छोटी गिलहरी और आई उसके साथ। ‘छुटकी’ यही नाम रखा होगा टम्मो ने अपनी छोटी गिलहरी का और ना भी रखा हो तो मैंने रख दिया। टम्मो, छुटकी को समझा रही थी कि अभी तू छोटी है, इधर-उधर ज्यादा मत भागा कर। दो वक्त यहीं मेरे साथ आकर खा लिया कर। छुटकी उसकी बात कम सुन रही थी, चावल में से जीरा हटाकर चावलों का मज़ा ज्यादा ले रही थी। मैं चुपचाप छिप कर उन्हें देखती रहती हूं। वो मुझसे अभी उतना खुली नहीं हैं। ये तो जानती हैं कि खाना मैं रखती हूं, पर सामने आते ही भाग जाती हैं। पर छुटकी जल्दी ही वापिस आकर फिर खाने लगती है। टम्मो मां है, ज्यादा डरती है।
पता है, कल क्या कह रही थी छुटकी गिलहरी से। देख छुटकी, तू रोज यहीं से खा-खाकर मोटी होती जा रही है। बस खाती है और जाकर सो जाती है। और ये चावल, परांठा जैसे जंक फूड से तुझे सौ तरह की बीमारियां लग जाएंगी। कितनी बार कहा है, पास वाले पेड़ से जामुन खा लिया कर। फ्रेश फ्रूट खाएगी तो हेल्दी रहेगी। हां, उसकी गुठली मेरे लिए ला दिया कर, शुगर में आराम रहेगा। बेटी ये नए जमाने वाले लोग हैं। पता नहीं कब ये दाना-पानी रखना छोड़ दें। मेहनत करना सीख बेटी, खुद अपना खाना ढूंढना और मनचाहा खाना शुरू कर।
मम्मा आप बेकार में टेंशन मत लिया करो। जब तक मिल रहा है, ऐश से खाओ, ट्रस्ट मी। नहीं मिलेगा तो मेहनत भी करके दिखा दूंगी। वैसे मुझे ये आंटी के डाले आलू के परांठे बड़े पसंद हैं। कोई इन्हें ये और समझा दे कि छोड़ी चिल्ली-सॉस भी छिड़क दिया करें इन टुकड़ों पर। आज मैंने जब सॉस वाले टुकड़े डाले हैं तो छुटकी खुश है, टम्मो नाराज़ है कि मैं उसकी बेटी की डाइट हैबिट अपने जैसी बना रही हूं।
-डॉ. पूनम परिणिता