ऐसा लगा तुम से मिल के...

गया हफ्ता बेहद मसरूफियत और रूमानियत भरा रहा। साथ ही थोड़ा रूहानी भी लिख दूं। कई बड़े लोगों से मुलाकात हुई, नजदीक से। बड़े का मतलब सिर्फ ओहदे से नहीं कह रही। गुणों से और न सिर्फ गुण, बल्कि सद्गुणों से। अपने पहले काव्य संग्रह ‘अजन्मी, द अनबॉर्न डॉटर’ के विमोचन के अवसर पर लोकसभा स्पीकर श्रीमती मीरा कुमार को करीब से जाना। जिनके इर्द-गिर्द सुरक्षा का घेरा होता है, हमारा मन हमेशा उनके ‘इन्टीमेट जोन’ में जाने को करता है। हम, उनके साधारण मनुष्यों के तौर पर बिहेव करने पर बेहद अचंभित रहते हैं।
एक बेहद शालीन मुस्कान हमेशा उनके चेहरे पर चस्पा है, वो धीरे से जब बोलती हैं तो मन सुनता है। अपनी स्वरचित कविता में मीरा कुमार ने बताया कि कैसे उन्होंने, कभी दिल को, कभी दुनिया को, कभी नौकरी को, कभी राज को मंजिल समझा, पर जब उन्होंने अंदर झांका तो पाया कि मंजिल तो भीतर है। मुझे ये समझ में आया कि जिनके बाह्य आवरण से हम अभिभूत हुए रहते हैं, जिन्हें हम पाना चाहते हैं, जिन्हें हम छू सकना चाहते हैं, जो हम हो जाना चाहते हैं, वास्तव में वो मंजिल कभी नहीं है। चाह जहां खत्म होती है, मंजिल वहां है।
इसी हफ्ते एक दिगंबर जैन मुनि मंदिर में हुई मुलाकात के बारे में भी बताना चाहूंगी। बहुत सारे प्रश्न धर्म के बारे, आस्था के बारे, ध्यान के बारे, जीवन, मृत्यु और मोक्ष के बारे, मेरे मन में अक्सर घूमते रहते हैं जिनका जवाब मैं इसी जीवन में, मरने से पहले पाना चाहती हूं। मर कर मौत को जाना तो क्या जाना कि फिर ब्लॉग पर आपको बता भी न पाऊं कि मुझे कैसा लगा मृत्यु से मिलकर। सो, सारे प्रश्न किए उन जैन मुनि महाराज जी से तो एक सबसे मोहक बात तो ये लगी कि उन्हें मेरे इतने सारे और इतने अटपटे सवालों पर जरा भी गुस्सा नहीं आया, वरन बड़े ही सरल और मुस्कुराते स्वभाव से उन्होंने उत्तर दिए।
हालांकि मेरे सवालों और उनके जवाबों का अलग से एक लेख लिखा जा सकता है, पर फिर कभी। सबसे बेहतर एक जवाब था कि जाना तो सबको एक ही मंजिल पर है, पर मैंने योगी का मार्ग चुना है जो ‘हाईवे’ है। और फिर अंत में उनका ये कहना कि मैंने सिर्फ अपने खुद के ज्ञान के आधार पर ये उत्तर दिए हैं, जितना कि मैं जानता था। आप हमारे आचार्य से और अधिक जान सकती हैं। मतलब, मैंने ये जाना कि खुद को छोटा बताकर भी आप किसी के मन पर बड़ी छाप छोड़ सकते हैं।
तीसरी जो महिला हैं, उन्हें आप सब जानते हैं, अक्सर देखते हैं। साधारण सूती साड़ी पहनती हैं, कोई लकदक आभूषण नहीं, कोई डिजाइनदार सैंडिल नहीं, साड़ी का पल्लू सिर से थोड़ा भी नीचे होने से पहले, हाथों की मशीनी मुद्रा में वापस सर पर आ जाता है। आपके हाथ जुडऩे से पहले, वो झुक कर, मुस्कुराकर आपको अभिवादन कर देती हैं। दिखने में इतनी साधारण हैं कि यदि इन्हें इनके मन की करने दी जाए तो संभवत: वे किसी समारोह में आएं तो पीछे की किसी सीट पर धीरे से जा बैठें और पूरा कार्यक्रम देखकर चुपचाप निकल जाएं। परंतु भाग्य ने उन्हें सबसे अमीर महिला बनाया है और लोगों ने इन्हें विधायक।
मैंने ये जाना कि जहां दूसरे नेता, पहनावे में, लोगों से मिलकर मुस्कुराने में, मदद और आश्वासन देने में बनावटी होते हैं और जोर-जोर से भाषण देने और दिखावा करने में असल होते हैं। वहीं हमारे हिसार की विधायक पहनावे में, लोगों से बात व मदद करने में खालिस हैं। बाकी सब काम वो करती हैं, क्योंकि भाग्य ने और आप लोगों ने उन्हें ये काम सौंपा है। मैं सोचती हूं चार व्यक्तियों से मिलने के बाद भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हो गया था। तीन लोगों का खुद पर असर मैंने आपको बताया। क्या मैं ज्ञान प्राप्ति के करीब हूं...बुद्धं शरणं गच्छामि...।
-डॉ. पूनम परिणिता