तेरी इक नज़र की बात है...

उसका नाम वंदना है, चूंकि अभी तक उससे मिली नहीं हूं, तो वो मेरी फोनफ्रेंड ही हुई। मेरी उससे कुल जमा चार बार ही फोन पर बात हुई है। वो भी कुत्ते को गोद लेने के बारे में। दरअसल नेट पर देखकर पता चला कि वंदना अपनी दो छोटी और प्यारी सी लेब्राडोर (कुत्ते की नस्ल) बच्चियों को किसी को गोद देना चाहती है। मैंने बात की तो उसने कहा नि मुझे आपसे थोड़ी ही देर बात करके अच्छा लगा, लेकिन मेरी ये शर्त है कि मैं इन बच्चियों को दिल्ली से बाहर नहीं दूंगी, क्योंकि मैं बार-बार ये देखना चाहूंगी कि इन्हें ठीक से रखा जा रहा है या नहीं। ठीक से रखने का मतलब बाद की बातों में समझ आया।
पहली बात तो यह कि इन्हें बांधकर नहीं रखना। इन्हें पूरे घर, यहां तक कि बिस्तर, पूजा घर, रसोई कहीं भी बेरोकटोक आने की पूरी आज़ादी। हो सके तो इनके लिए अलग कमरे की व्यवस्था जिसमें इनके लिए एक आरामदायक (महंगा और कुत्तों के लिए अलग से मिलने वाला) बिस्तर, खिलौने और इनके लिए खाने-पीने का सामान हो। जो भी इन्हें ले जाए, वो इनसे (बिना शर्त) बेइंतहा प्यार करे। घर में मम्मी, पापा, दादी, नौकर या कोई भी सदस्य ऐसा न हो, जिन्हें कुत्तों या उनकी किसी आदत से कोई परहेज़ हो। कुल मिलाकर ऐसा परिवार हो जिसमें कम से कम एक प्राणी कुत्तों के लिए पागल हो, बाकी दीवाने हों। अगली एक, दो बातों में उसने बताया कि वो पांच, छह घर देखकर आ चुकी है जिसमें से कोई भी उसे उसकी शर्तों के चलते पसंद नहीं आया। सो, अभी इन दो बच्चियों और तीन अन्य कुत्तों के साथ वंदना खुशी-खुशी रह रही है।
वंदना ने कत्थक में पीएचडी की है तथा सांस्कृतिक मंत्रालय के माध्यम से कई बार विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है।
वहीं एक बार ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान वहां कुत्तों के बेहतर रखरखाव पर ध्यान गया और वहां से वापस भारत आने पर यहां की गलियों में जब कुत्तों को बेसहारा, भूखे घूमते और वाहनों से टकराकर मरते देखा तो उनके प्रति समर्पित हो गई। तब से कहीं भी कोई घायल, बीमार कुत्ता देखती है तो उसका उपचार कराती हैं। कुत्ते को देखभाल की ज़रूरत हो तो अपने साथ रख लेती है। अन्यथा गोद दिलवाने का प्रबंध करती है। उसने एनजीओ या संस्था नहीं बनाई है। बस, हमारे ही एक जूनियर डॉक्टर दंपति और दोस्तों की मदद से ये नेक काम कर रही है। वो कश्मीरी पंडित है और अविवाहित है। अपनी मां के साथ रहती है। विवाह में शायद कहीं, उसके कुत्तों के प्रति इतना समर्पण आड़े आ रहा हो। पर उसे और मुझे विश्वास है कि समय रहते उसे कोई उसी की तरह समझने वाला जीवन साथी ज़रूर मिल जाएगा। जैसा कि उसने मजाक में कहा-आई नीड ए पार्टनर, हू मस्ट बी केयरिंग (फिर बीच में थोड़ा रुककर)...फॉर डोग्स।
उसकी बात का अंदाज, उसकी भावनाएं, उसका समर्पण मुझे भाता है, मैं काफी देर तक उसके बारे में सोचती हूं। वो कई साल से ये काम कर रही है। बस मेरी सोच, एक जगह आकर ठिठक जाती है कि कहीं ये काम वंदना ने किन्हीं आदमजात बच्चियों के लिए किया होता? दिल्ली में ही कहीं, अपने पड़ोस में ही कहीं निठारी कांड जैसे हादसे होते ही रहते हैं। कहीं उन बच्चियों को वंदना जैसी किसी सुह्रदय का साथ, हाथ मिल गया होता। उन पांच कुत्तों के बढिय़ा बिस्तर से इतर, एक छोटा सा झूला किसी अनाथ बच्ची के लिए भी लगा लिया होता। मेरा आशय वंदना के कुत्तों के प्रति सुव्यवहार की आलोचना बिल्कुल नहीं है और मैं मनुष्य और कुत्तों के व्यवहार की वफादारी को भी बखूबी समझती हूं। पर दिल में इतना प्यार, संवेदना, समर्पण हो तो एक प्यारी बेसहारा बच्ची की पालना कितनी उच्चकोटि की हो सकती है, बस ये कहना चाहती हूं। ऐसा काम हमारे ही शहर में एक सीनियर मेडिकल ऑफिसर कर रही हैं, कभी उनके बारे में अच्छे से बताऊंगी।
-डॉ. पूनम परिणिता