रूह से महसूस करो...

पिछले दिनों मैंने पढ़ा कि एक प्रसिद्ध हॉलीवुड अभिनेत्री ने अपने मशहूर अभिनेता पति को उसके जन्मदिन पर एक जलप्रपात भेंट किया। पढ़कर पहले तो नारी सुलभ प्रतिक्रिया हुई, पर जल्द ही उस पर मेरा प्रकृति प्रेम हावी हो गया। ये नदियां, ये आसमां, हरे-भरे जंगल, ये झरने, मीठे पानी के स्त्रोत क्या सिर्फ़ एक प्रेमी को भेंट किए जा सकते हैं? हालांकि किए तो जा सकते हैं, जैसे कि कर दिए गए हैं। पर क्या कर देने चाहिए?
एक दिन जब मैं घर के जरूरी सामान की लिस्ट बना रही थी तो चाय, चीनी, दाल, बेसन के बीच ही कहीं अगरबत्ती, बाती और लिख दिया धूप का एक पैकेट। बस तभी मन कहीं खो गया। इस खरीदती-बिकती दुनिया में कभी ऐसा हो गया तो? ये हमारी आंखों को शीतलता देती, रूह को सुकून देती, ये बारिश, ये धूप, ये रोशनी, ये अंधेरा, ये सूरज, ये चंदा, ये हवा, ये छुअन, ये सब सिर्फ़ महसूस कर सकने की चीज़ें भी बिकने लगीं तो? अभी सिर्फ़ दो ही चीज़ें बिक सकती हैं जिन्हें मापना मनुष्य सीख गया है। जो सिर्फ़ रूह से महसूस की जा सकती हैं, अभी बिकाऊ नहीं हैं। जैसे झरनों से, नलों से निकलता पानी बोतलों में, थैलियों में, प्लास्टिक के गिलासों में बंद हो गया है। कभी धूप, छांव, बारिश, सर्दी, गर्मी, अंधेरा, उजाला भी हमारे घर की लिस्ट में जगह पा गया तो?
कैसा होगा, कभी किसी खुली-खिली धूप में, जो मेरा मन किया तो निकाल लिए, फ्रिज से बारिश के दो पैकेट और ले आई आंगन में भीगने के लिए। फिर चली आई अंदर बचती-बचती पानी से। पर फिर भागी, क्योंकि ख्याल आ गया कि कितनी खरीदी है, पूरी वसूल तो कर लूं। देखा असर, बेटे ने ये लाइनें पढ़कर कहा, मम्मा फिर तो कभी बाहर आवाज़ें आया करेंगी, बारिश ले लो, धूप ले लो, कोहरा ले लो, ठंडी हवा लो...। एकदम ताज़ा ऑरगेनिक बारिश है, पहाड़ों से मंगवाई है। और जो कभी जैसे आजकल गहरी, ठंडी, बर्फीली हवाओं और धुंध का मौसम हो और जाना भी बेहद ज़रूरी हो, तो हो सकता है कि धूप के ये पैकेट काम आ जाएं जो आपने एक के साथ एक फ्री स्कीम में खरीदकर रख लिए थे एडजेस्टएबल एंटीना के साथ।
इस धूप को गाड़ी के ऊपर या फिर लॉन टेबल के ऊपर कहीं भी फिक्स किया जा सकता है। जब बाकी लोग ठंड से कांप रहे हों तो इस धूप के टुकड़े के नीचे हाफ स्लीवस टी-शर्ट पहनकर इतराने की अलग ही शान होगी। पर जाने क्यूं औरों की ये कंपकपाहट मुझे एक सिहरन दे गई। फिर तो इन सब पर भी राशनिंग शुरू हो जाएगी। इनके दाम भी अख़बारों में छपा करेंगे। गरीब तो बेचारे घरों के बाहर धूप, छांव बीनते नज़र आएंगे और अमीर सर्द-गर्म से अपनी किसी नई बीमारी से ग्रस्त हुआ करेंगे। ओह प्लीज़! इतने छोटे से लेख में इतनी टेंशन देने का मेरा इरादा बिल्कुल नहीं था। मैं तो बस यूं ही...बहरहाल, मेरी सोच के साथ कुछ देर टहलने का शुक्रिया।
डॉ. पूनम परिणिता