वक्त ने किए क्या हसीं...

पिछले हफ्ते काफी मसरूहफियत रही, ज़ेहनी तौर पर भी और यूं भी। शहर में एक बेहतरीन आयोजन हुआ। पेरेंटिंग पर था, लेकिन अटैंड नहीं कर पाई। मन बहुत था इसमें शामिल होने का और जानने का कि क्या पढऩा, सुनना, वर्कशॉप और दूसरों का अनुभव खुद के बच्चों को पालने में सहायक हो सकता है। वक्त इस कदर बदल चुका है कि हमारे समय की कहावतों तक को बदल देने का टाइम आ गया लगता है। कारण-आज के परिवेश में बेमानी सी हो गई हैं वो कहावतें।
अब देखिए, एक वक्त था जब कहा जाता था कि मां तो वो होती है जो खुद गीले में सोकर बच्चे को सूखे में सुलाती है। पर अब आलम ये है कि बच्चे को ड्राइपर पहनाकर मां खुद चैन से सोती है और बच्चा गीले में सोते हुए भी टेक्नीकली सूखे में आराम से सोता है। मतलब साइंस ने त्याग का ये स्कॉप छीन लिया। और जिसे मां का ममतामयी आंचल कहा करते थे, वो बेचारा कहीं ढूंढे नहीं मिलता। वो स्कूटी चलाती सुपर मॉम के सिर, चश्मे और मुंह के इर्द-गिर्द कुछ यूं उलझा सा लिपटा है कि स्कूल से छुट्टी के वक्त लेने आई मां को बच्चे तक नहीं पहचानते, जब तक आवाज़ लगाकर बुला न ले। एक और कुठाराघात मां और बच्चे के स्नेहमयी रिश्ते पर ये भी कि एक नया अजीब का चलन देखने में आ रहा है।
आजकल के एक्स जेनरेशन बच्चे अपने बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड को ओ...मॉय बेबी कहकर बुलाते हैं। फिर यही चलन कमोबेश नए अभिभावकों में भी जारी रहता है और बच्चा बेचारा कंफयूकान में रहता है कि मम्मा मुझे बुला रही या पापा को? और घर में दरअसल बेबी है कौन? आजकल के ये बच्चे भी शुरू से ही इलेक्ट्रॉनिकली साउंड पैदा हो रहे हैं। आप बच्चे के सामने नोकिया-5800, एन-70 और नोकिया ल्यूनिया रख दें। वो पहले वाले मोबाइल को तो बायीं लात मारकर बैड से गिरा देगा, दूसरे को एक बार उलट-पलट कर देखेगा। तीसरे को उठा, ऑन और स्टार दबा अनलॉक करके झट से गाना लगा देगा, वॉय दिस कोलावरी...आ...डी।
तो इस तरह के बच्चों के लालन-पालन के लिए बेशक आपको पढऩा, सुनना और वो सब करना पड़ेगा जो आपको पालते हुए बिल्कुल नहीं किया गया था। पर पता नहीं, पेरेंटिंग टिप्स, क्वालिटी टाइम, ट्रस्ट योर किड्स और सबसे ऊपर स्पेस नामक शब्दों में, बस एक ज़रूरी शब्द कार में पीछे कहीं स्टेपनी के पास रखा नज़र आता है जिसे कहा करते थे संस्कार। जिसे हमारे माता-पिता अक्सर रोज धो-पोंछकर सबसे ऊपर रखते थे। देखिए इन सब में बुरा जो देखन चलेंगे तो कबीर साहब खुद आपको ही शर्मिंदा कर देंगे। सो बस दुनिया है, चलन है, आपका खुद का बच्चा है और खुद की जवाबदेही है, दिखावे पर मत जाओ...
और हां, मां पर कहावतों में आखिरी बात, हमारे वक्त में अमिताभ यूं आंखें भरकर और धर्मेंद्र कुछ यूं नाक फुलाकर मां...कहते थे कि इमोशनस बह-बहकर बाहर आती थी। आजकल की फिल्मों में दीपिका पादुकोणे यूं घनघनाती कह कर बाहर निकल जाती है-आयशा, खाने पर वेट मत करना। आज शाम पार्टी में दोस्तों के साथ लेट हो जाऊंगी। जैसे आयशा को कुछ साल के लिए मां के काम पर रखा हो। बहरहाल, अपने कीमती समय में से कुछ क्वालिटी टाइम मुझे और मेरे आर्टिकल को देने का शुक्रिया।
-डॉ. पूनम परिणिता