मन रे तू काहे ना धीर धरे...

विगत दिनों शक्ति और दौलत के दो बेताज बादशाह दिवंगत हो गए। बाला साहेब और पोन्टी चड्ढा। जहां एक ओर, शक्ति के स्रोत और फिर बुझी हुई राख में भी चिंगारी सी, ढूंढने की आदत के चलते बीस लाख लोग अंतिम यात्रा में पहुंचे। वहीं दूसरी ओर, दौलत के स्तंभ को शायद अभी तक अग्नि भी नसीब नहीं हुई है। डाक्टर अभी दूसरा पोस्टमार्टम करने की तैयारी में हैं, क्योंकि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी में काट-काट कर सोने का अंडा देने का मुहाना ढूंढा जा रहा है, पर मिलेगा कुछ भी नहीं, मिलता, कभी कुछ भी नहीं। एक ओर मिलेगी कुल जमा सवा किलो राख और दूसरी ओर बस कतरा-ए-खून।
तो फिर क्यूं मन रे..., आम आदमी किसी की मौत का समाचार सुनकर आमतौर पर करीब पचास सेकंड तक सांसारिक नश्वरता पर मनन करता है। किसी को सामने मुर्दा देखकर यह अवधि सौ सेकंड तक बढ़ सकती है और शव दाह में अमूमन एक सौ बीस सेकंड, तब तक वाइबरेटर मोड पर किया मोबाइल, आपको वापिस इस शाश्वत संसार में ला छोड़ता है। आप साइड में जाकर धीमे स्वर में बोलते हुए आफिस से आया फोन सुनते हैं, खुद की प्रजेन्ट सिचुएशन बताते हुए, थोड़ी देर से आने की सूचना देते हैं और थोड़े निश्चंत हो जाते हैं, क्योंकि आपने इस सिचुएशन का भी फायदा उठाते हुए, खुद को बेहद चालाक साबित कर लिया है।
पर इस मन का करिए क्या, इसे तो दिलचस्पी है, बाला साहेब की निजी ज़िंदगी में थोड़ा और करीब से झांकने की। आंखें उस खबर को ढ़ूढती हैं, कैसे पोन्टी दाल, भुजिया की रेहड़ी से उठकर पूरी यूपी में सोमरस का देवता बन गया। सिर्फ डेढ़ हाथ का कर्मयोगी, कैसे हर पार्टी को समान नजर से देखता, सबसे सौहार्द रिश्ते बनाए रखता। वो सिर्फ हमारे भगवान कृष्ण के कर्मयोग के सिद्धांत में विश्वास रखता। दरअसल, गीता में भी सिर्फ कर्म करने पर जोर दिया है। सद्कर्म की बात या तो आई नहीं या इसे सब अपने तरीके से समझते हैं।
बाला साहेब शेर की तरह गरजते रहे, जिनकी दहाड़ से सभी चुप हो जाते। पर जब कभी घर में बच्चे-कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ते तो शेर गहन चुप्पी खींच जाता। पोन्टी एक लहर की तरह जीया, बस तूफान की तरह बढ़ती लहर। यूं चमचमाती ज़िंदगी लुभाती तो जरूर है, मन बोलता तो है, फिर धीर धरने को समझने, समझाने को कोई आदर्श हो। किसे देखकर जिये, कैसी ज़िंदगी जिए। भगवान के अवतार, जो मोक्ष का रास्ता बताते वो भी किसी दिन यूं ही अस्पतालों में साधारण मनुष्य की भांति, ऑक्सीजन की सप्लाई के चलते भी, विवश हो मर जाते हैं।
कोई है तो जिसे पता है, जन्म, मृत्यु, जीवन, मोक्ष, अनंत, शून्य। पर बताता कोई नहीं। गीता में अर्जुन को कृष्ण ने कहा कि मैं ही मारने वाला, मैं ही मरने वाला। तो दुर्योधन क्या इस ज्ञान को पहले से ही जानता था कि कृष्ण ही चीर हरण करने वाला है और कृष्ण ही चीर बढ़ाने वाला। बस ‘कर्म’ ही सर्वोपरि है। कि कर्म या कुछ भी अपने हाथ में है ही नहीं। फिर मन को कहना क्या ठीक है कि तू काहे ना धीर धरे।
-पूनम परिणिता