सुन ले दिल की पुकार...

बस कुछ यूं ही मैं शनिवार को मंदिर गई थी, वो माता की इतनी बड़ी मूर्ति है कि उसके पीछे आराम से छुपा जा सकता था। मैं तो बस प्रार्थना कर रही थी, वो तो मेरा मन जा छिपा था, मूर्ति के पीछे और सबकी प्रार्थना, दुआ, अरदास सुनने लगा था और उस दिन जाना कितना मुश्किल है भगवान होना। सबसे पहले वो मां और बेटी आई थी। जहां मां ने पीली कनेर के फूल चढ़ाये, बेटी ने जीन्स की पिछली जेब से निकाल कर दस रुपये का नोट चरणों में रख दिया था। पहली अपील मां की तरफ से आई-हे देवी, वो जो जबलपुर से रिश्ता आया है ना इसके लिए, वहीं बात पक्की करा दो। खर्चा वगैरह तो देख लेंगे, बाकी मैया तेरा आसरा तो है ही। थोड़ी जल्दी बात बन जाए तो अक्टूबर में रख दूंगी शादी। पहला कार्ड देकर जाऊंगी मैया।
तभी बेटी ने पुकार लगाई-माता किसी तरह मम्मी-पापा को मना दे राहुल के लिए, इनके दिमाग से कास्ट की बात निकाल दे और हां वो जबलुर वाले रिश्ते की ना करवा देना। देखो मैंने व्रत राहुल के लिए रखे हैं, ना कि उस जबलपुर के सड़ी शक्ल वाले के लिए। मैंने देखा मां थोड़ी असमंजस में थीं। जाने क्या फैसला देंगी। पता नहीं कैसे डिसाइड करेंगी कि किसने ज्यादा श्रृद्धा से मांगा है।  तभी, डाक्टर साहब की प्रार्थना फुसफुसाने लगी, बकायदा बर्फी के साथ थी। नई एमआरआई मशीन आ गई है, मैया। फिट भी करवा दी है। लोन थोड़ा ज्यादा ही हो गया है, कृपा करना। मतलब सौ मरीज भी रोज के आ जाएं तो साल भर में उतर जाएगा। की तो है दो-तीन और डाक्टरों से बात, वो भी भेजेंगे रेफर करके। बस अपनी दया का हाथ रखना मां। तब तक नीचे चटाई पर बैठे गुप्ता जी का ‘दुर्गा क्वच’ खत्म हो चुका था। दो बार सिर से लगाकर रख दिया वापिस और कहने लगे-माता बस इन बड़ी बीमारियों से दूर रखियो, एक अटैक में तो आपकी कृपा से बच गया था। देखो अब तो सैर भी करता हूं, दवाई भी वक्त पर लेता था। बस इन डाक्टरों का मुंह माथा न देखना पड़े।
मेरा मन तो बस भक्तों की पुकार सुनने तक ही सीमित है। माता क्या सोचती हैं, नहीं कह सकती। उनके लिए तो सब बराबर हैं। अब इस युवा की प्रार्थना मैं सुन नहीं पा रही हूं या ये कुछ मांग ही बड़ी रहा है। हां बुदबुदाया तो- इस बार इंटरव्यू क्लीयर करवा दो मां, वरना ओवरएज हो जाऊंगा। तू तो घर की हालत जानती है, कहां से लाऊं इतने लाख रुपये देने को, बस आगे उससे कुछ बोला नहीं जा रहा था। वो सर झुकाकर जल्दी निकल गया। तब तक सफेद कपड़े वाले तीन-चार आदमी एक साथ आ गए थे। दान-पात्र में सौ-सौ के कुछ नोट डाल रहे थे। उनमें से एक माता से कह रहा था, तेरी बड़ी कृपा है माता, बस अपना आशीर्वाद बनाए रखना। पांच-चार नौकरियों वाले फिट करवा दूं, फिर मंदिर का कमरे का काम शुरू करवा दूंगा। बस यूं ही कृपा रखना माता। मैं माता की परेशानी समझ सकती थी। रात के दूसरे पहर जब पुजारी ताला लगा कर सो जाता होगा, तब कैसे करती होगी सबका लेखा-जोखा। बाकी की कुछ रुटीन प्रार्थनाएं थी, मसलन, मकान पूरा करवा देना, रिजल्ट अच्छा देना, प्रमोशन करवा देना, बड़ी वाली गाड़ी तथा कुछ शरीर संबंधी बीपी, शुगर कंट्रोल करा दो जैसी।
पर तभी एक छोटा बच्चा अपनी मां के साथ आया था। मेरी दिलचस्पी उसकी प्रार्थना में थी। लो वो तो आते ही शुरू हो गया। हे भगवान, एक तो फुटबॉल मैच में सेलेक्शन करवा देना, यूनिट टेस्ट में ए ग्रेड दिलवा देना और मम्मी कल पॉकेट मनी दे दें और आपको पता ही है मेरे पापा पुलिस में हैं, उनको छुट्टी नहीं मिलती, वो कह रहे थे कि कुछ देशभक्त किस्म के लोग सत्ता में आ जाएं तो कुछ सुधार हो और हमें भी शांति मिल जाए। तो उनको वो-वो दे देना। और हां मम्मी मुझे जाते हुए आईसक्रीम के लिए मना ना करे। मुझे लगा माता को इनकी बात तो तुरंत मान लेनी चाहिए। मेरी भी प्रार्थना खत्म हो चुकी है, चलना चाहिए। कहीं भगवान इसीलिए तो पत्थर नहीं हो गए। मैं सोचती जा रही थी...।
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