आज फिर मरने का इरादा है...


मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, वो और बात है कि ज़िंदगी ने मेरा साथ बस यहीं (88 वर्ष) तक दिया। फिर सौंप दिया सांसों का बैटन मौत के हाथ और खुद रुक कर वहीं, देखती रही मुझे जाते रेस के दूसरे हिस्से में। यहां सब धुआं-धुआं सा है, उड़ाने को फिक्र नहीं है। वाय दिस कोलावरी-कोलावरी पर झूमते बच्चों को चाहे फर्क पड़े, लेकिन पचास से सत्तर दशक का पड़ाव जिनके भी जीवन को छुआ है, उनके अंदर कहीं कुछ कारूर दरक गया है। एक अनोखी अदा, एक हिलती, थिरकती, बहती लहर जैसे अचानक थम सी गई है।
देवानंद की उम्दा फिल्में और उनके बेहतरीन गीत जैसे ज़िंदगी के फ़लसफे को खुद बयां करते हैं। अगर अभी प्यार को ढूंढ रहे हैं तो सुनिए...ये दिल होता बेचारा, हम हैं राही प्यार के हमसे कुछ बोलिए, या फिर कभी कभी, कहीं नहीं और पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले! और अगर प्यार को पा लिया है तो सुनकर होश खोइये...तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं, एक घर बनाऊंगा तेरे घर के सामने या फिर दिल पुकारे रे- रे। और गाता रहे मेरा दिल, तू ही मेरी मंज़िल। और भगवान करे कहीं प्यार में दिल टूट चुका है तो धीमे-धीमे से बजाइए...जीवन के सफऱ में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को, तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं, सैया बेईमान मोह से छल किए जाए या फिर वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाता है कहां। लेकिन मुझे देवानंद के कुछ सदाबहार नगमें पसंद हैं। मसलन, तुम हमें जानों हम तुम्हें जाने, अभी जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं, दम मारो दम, खोया-खोया चांद। और, दिन ढल जाए हाये रात जाए।
कभी-कभी मुझे लगता है, हम सब भी चाहे कोई भी हों मां-बाप, भाई-बहन, व्यवसायी, अधिकारी, नेता, अभिनेता, साधु-संत, हर वक्त अभिनय में रहते हैं। एक भूमिका से दूसरी भूमिका में जाते अक्सर अपने कौशल का प्रदर्शन करते रहते हैं। बस अपने अंदर बसा वोआदमी सादबे-छिपे कहीं अपना असली रूप दिखा जाता है। देवानंद ताउम्र नौजवान के अभिनय में रहे, बस कभी वो आदमी सा, चुपचाप सा आता, गले की झुर्रियों पर मफ़लर डाल जाता। कहते हैं देवानंद के पास कई सौ मफ़लर थे।
अभिनेताओं का जीवन ज्यादातर पेचीदा होता है। वो ज़िंदगी में अभिनय करते हैं और ज़िंदगी उनसे अभिनय करती है। फिल्मविद्याके गीतकिनारे-किनारे चलेकी शूटिंग के दौरान सुरैया अचानक, दरअसल डूबने लगीं तो अभिनय छोड़ देवानंद ने उन्हें बचा लिया। तभी कहीं किसी क्षण शायद सुरैया ने वो दोबारा मिली ज़िंदगी देवानंद के नाम कर दी।
करीब साल भर बाद फिल्मजीतके दौरान देवानंद ने हीरे की तीन हज़ार रुपए की अंगूठी  के साथ सुरैया को परपोज़ किया। परंतु सुरैया की नानी ने उनके सामने मुसलमान हो जाने की शर्त रखी जिसे ज़िद्दीधर्म देव आनंद पिशोरीने नहीं माना और हार गए। सुरैया ने इसका प्रायश्चित ताउम्र अविवाहित रहकर किया। और देवानंद ने इसका प्रायश्चित ताउम्र सुरैया को भूल जाने का अभिनय करके किया। यूं क्या भुला दिया जाता होगा प्यार को!
कहीं लंदन की धरती पर आखिरी क्षणों में हिंदूधर्म देव आनंदने भगवान से सुरैया के बगल वाली कब्र में दफन होना तो ना मांग लिया होगा?  बहरहाल, इस गीत के साथ इस सदाबहार अभिनेता को मेरी श्रद्धांजलि-
आसमां के नीचे, हम आज अपने पीछे
प्यार का जहां बसा के चले, कदम के निशां बना के चले।
-डॉ. पूनम परिणिता