उनके हिस्से का थोड़ा सा प्यार

उन सभी लोगों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं जो इस नेक प्रोफेशन से जुड़े हैं। ये वाक्या प्राय: सभी के साथ कभी न कभी जरूर पेश आया होगा। याद कीजिए कभी बच्चे को होमवर्क कराते हुए, उसकी नोट बुक में कोई गलती सुधरवाते हुए, आपके बच्चे ने कहा, नहीं...ये ठीक नहीं है, मेरी टीचर ने ऐसा ही बताया है।
फिर, आप उसे लाख समझाते हैं पर जानती हूं वो नहीं माना होगा। और हां, आपको उसे ठीक कर के लिखने भी नहीं दिया होगा। तो ये अहमियत है हमारी जिंदगी में टीचर की। यानि कभी-कभी तो पेरेंट्स से भी ऊपर, हालांकि शास्त्रों में तो साक्षात परम ब्रह्म ही कहा गया है। हमारी चार से लगभग पच्चीस साल तक की जिंदगी में कितने ही टीचर आते हैं। मुझे याद है जब छठी कक्षा में एक मैडम की शादी हुई और वो स्कूल छोड़ कर जाने लगी, अपने हाथों से ग्रीटिंग कार्ड बनाना, उनके गिफ्ट के लिए क्लैक्शन करना, फिर गेम्स पीरियड में उनकी विदाई पार्टी करना और फिर रोना। कितनी आत्मीयता के साथ जुड़ जाते हैं हम इनके साथ।
पिछले दिनों फेसबुक पर एक सर्जरी वाले सर की फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली। कॉलेज के दिनों में कभी हिम्मत नहीं होती थी उनके रूम में जाने की, कभी उनसे बात करने की। यकीन मानिए बड़ा अच्छा लगा और फिर फोटोज के जरिए उनके परिवार को जानना, उन्हें एक अलग व्यक्तित्व के रूप में जानना। अपने लिखे हुए पर उनके कमेंटस पढऩा, एक नई स्फूर्ति देता है। कहना यह चाहती हूं कि क्लासिस के कड़क टीचर से इधर आम जिंदगी में बड़े प्यारे इंसान भी होते हैं। अब लिखते-लिखते मुझे अपने एडवाइजर की भी याद आ गई है, जिन्हें मैं पांच सितंबर को मैसेज करना नहीं भूलती और अपने बेटे की पहली प्रिंसिपल मैडम को, बेटे से फोन करवाना भी।
मुझे याद आता है कि स्टूडेंट लाइफ में हम कैसे काम पडऩे पर टीचर्स के घर ढूंढ लिया करते थे। पर अब जबकि वो बुजुर्ग हो गए होंगे, क्या हम में से कोई उनसे मिलने के लिए, उनकी कुछ पुरानी यादें लौटाने के लिए जाता है उनके पास? कहीं पढ़ा है कि किसी भी चीज को आदत बनने में नियमित रूप से करने पर छह से आठ महीने लगते हैं। फिर सोचती हूं, इतने साल दर साल, बच्चों की क्लासेस लेना, उनके भविष्य निर्माण में उनकी सहायता करना, उन्हें समझना, उन्हें समझाना। रिटायरमेंट के बाद कितना खालीपन महसूस करते होंगे। चाहते होंगे कि कभी-कभी कोई आकर अपनी सफलता बांटे उनसे, सफलता में उनके योगदान के केक का एक टुकड़ा खिला जाए, अपने हाथों से।
तो अगर इसे पढ़ कर आपको भी अपने कोई उम्रदराज सर या मैडम याद आए हों तो अपनी व्यस्तता में से बस कुछ पल निकालें और दे आएं उनके हिस्से का थोड़ा सा प्यार उन्हें। सिर्फ प्रवचन नहीं हैं ये, मैं जा रही हूं...डा. विद्यासागर से मिलने उनके घर।
-डा.पूनम परिणिता